SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ७२ ] वैशेषिकमतोपसंहारः २३७ इत्येकस्मिन्नेव भवे प्रागुपार्जिताशेषशुभाशुभकर्मफलभोग इत्यपरः पक्षः । ततश्च भोगात् प्रागुपार्जिताशेषकर्मपरिक्षय एकविंशतिभेदभिन्नदुःखनिवृत्तिरिति । तानि दुःखानि कानि इत्युक्ते वक्ति संसर्गः सुखदुःखे च तथार्थेन्द्रियबुद्धयः । प्रत्येकं षड्विधाश्चेति दुःखसंख्यैकविंशतिः ॥ इति सकल पुण्यपापपरिक्षयात् तत्पूर्वक बुद्धिसुखदुःखेच्छाद्वेष प्रयत्नसंस्का• राणामपि परिक्षय आत्मनः कैवल्यं मोक्ष इति असौ वैशेषिकः प्रत्यवातिष्ठिपत् । सोप्यतत्त्वज्ञ एव । कुतः। तथा देवार्चनातपोनुष्ठान विशिष्टध्यानादीनां मुमुक्षुभिरकरणप्रसंगात् । कुतः । तत्त्वज्ञानादागामिकर्मबन्धाभावे भोगात् प्रागुपार्जितकर्माभावे स्वयमेव मोक्षप्राप्तिसंभवात् । तदुक्तपदार्थानामसत्यत्वेन तद्विषयज्ञानस्य मिथ्याज्ञानत्वात् तत्त्वज्ञानानुपपत्तेश्च । तथा तन्मते तत्त्वज्ञानानुपपत्तौ तत्वज्ञानात् मिथ्याज्ञानं निवर्तते, मिथ्याज्ञाननिवृत्तौ तज्जन्येच्छाद्वेषरूपदोष निवृत्तिः, तन्निवृशौ तज्जन्यकायवाङ्मनोव्यापाररूपप्रवृत्तिनिवृत्तिः, तत्प्रवृत्तिनिवृत्तौ तज्जन्यपुण्यपापबन्धलक्षणजन्मनिवृत्तिरित्यागामिकर्मबन्धनिवृत्तिस्तत्त्वज्ञानादेव भवतीत्येतत् तेषामसंभाव्यमेव तेषां मते पदार्थयाथात्म्य तत्त्वज्ञानानुपपत्तेः । कुतः। तच्छास्त्रप्रतिपादित पदार्थानां प्रमाणबाधितत्वेन सत्यत्वाभावात् I है वैसे इन शरीरों को भी समेट लिया जाता है' इस प्रकार एक जन्म में भी पूर्वार्जित कर्मों के फल भोगे जाते हैं। कर्मों की निवृत्ति होने पर सब दुःख दूर होते हैं । संसर्ग, सुख, दुःख, छह इन्दिय, उन के छह विषय तथा उन की छह बुद्धियां इस प्रकार दुःख इक्कीस प्रकार के हैं । इन सब के दूर होनेपर पुण्य पाप नही रहते तथा बुद्धि, सुख, दु:ख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न एवं संस्कार का भी लोप होता है – इन सब से मुक्त ऐसे केवल आत्मा का स्वरूप ही मोक्ष है । वैशेषिक मत की यह सब प्रक्रिया उचित नही । यदि आगामी कर्म तत्त्वज्ञान से निवृत्त होते हैं और पुराने कर्म फल भोगने से निवृत्त होते हैं तो देवपूजा, तप, ध्यान आदि का क्या उपयोग है? दूसरे, वैशेषिकों का पदार्थवर्णन ही यथार्थ नही है- - तत्त्वज्ञान नही है, तब उस से मिथ्या ज्ञान दूर होना, इच्छा और द्वेष दूर होना आदि कैसे संभव होगा ?
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy