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________________ २१० विश्वतत्त्वप्रकाशः [६१दित्यतिप्रसज्यते। अथ अन्यस्मादागतं समवैतीति चेत् तर्हि सामान्यस्य सक्रियत्वमङ्गीकृतं स्यात् । तथा च सामान्यमसर्वगतदव्यं सक्रियत्वात् मेघादिवदित्यतिप्रसज्यते । अथ व्यक्त्या सहोत्पद्यमानं समवैति चेत् तर्हि सामान्यमनित्यम् उत्पद्यमानत्वात् विद्युदादिवदित्यतिप्रसज्यते । अथ सर्वोऽप्यतिप्रसंगः अङ्गीक्रियत इति चेन्न। अपसिद्धान्तापातात् । तथा व्यक्तिनाशे तद्गतं सामान्यं तत्रैव तिष्ठति अन्यत्र गच्छति व्यक्त्या सह विनश्यति वा । प्रथमपक्षे सामान्यस्यानाश्रितत्वादतिप्रसंगः स्यात् । द्वितीयपक्षे सक्रियत्वेन असर्वगतद्रव्यत्वादतिप्रसंगः२ स्यात् । तृतीयपक्षे सामान्यस्यानित्यत्वादतिप्रसंगः स्यात् । तस्मात् सामान्यं स्वव्यक्तिसर्वगतमपि नोपपनीपद्यते। तथा हि । सामान्य व्यक्तिव्यतिरिक्तं न भवति तदन्यत्वेनाप्रतीयमानत्वात् व्यक्तिस्वरूपवत् । तथा पटोऽयं पटोऽयमित्यनुगतप्रत्ययः नित्यव्याप्येकवस्तुविषयो न भवति । प्रतिपिण्डं कृत्स्न उत्पन्न होता है ? व्यक्ति की उत्पत्ति के पहले भी वहां सामान्य का अस्तित्व मानें तो सामान्य आश्रयरहित सिद्ध होगा - तदनुसार उसे नित्य द्रव्य मानना होगा। दूसरे प्रदेश से सामान्य वहां आता है यह कहें तो सामान्य सक्रिय सिद्ध होगा। जो सक्रिय होते हैं वे मेघ आदि पदार्थ सर्वगत नही होते अतः सामान्य भी सर्वगत नही हो सकेगा। सामान्य व्यक्ति के साथ उत्पन्न होता है यह कथन भी ठीक नही क्यों कि तब सामान्य बिजली आदि के समान अनित्य सिद्ध होगा। इसी प्रकार व्यक्ति के विनष्ट होने पर उस का सामान्य वहीं बना रहता है अथवा कहीं दूसरी जगह जाता है अथवा विनष्ट होता है ? यदि सामान्य वहीं बना रहता है तो वह आश्रयरहित अतएव नित्य द्रव्य सिद्ध होगा। यदि वह दूसरी जगह जाता है तो सक्रिय अतएव असर्वगत होगा। यदि नष्ट होता है तो अनित्य सिद्ध होगा। इन सब पक्षों के विचार से स्पष्ट होता है कि सामान्य को अपनी व्यक्तियों में सर्वगत मानना भी सदोष है। १ नित्यद्रव्यत्वं स्यात् । ४ व्यक्ति विना। २ अनित्यत्वं स्यात् । ३ व्यक्तेः पृथग न भवति ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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