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________________ -६०] आत्माणुत्वविचारः २०७ दुःखस्य वा युगपदुत्पत्तिपरिज्ञानानुभवासंभवात् । अथ सर्वाङ्गेषु युगपत् सुखं नोत्पद्यते दुःखमपि युगपत् सर्वाङ्गषु नोत्पद्यते इति चेन्न । हावभावविलासविभ्रमशृङ्गारभङ्गीसुरूपसुरेखावत्सकलकलाप्रौढकफप्रकृति समप्रमाणश्यामाङ्गिन्याः समालिङ्गनसमयेषु युगपत्समुत्पन्नसाङ्गीणसुखस्य स्वानुभवप्रत्यक्षप्रसिद्धत्वात्। तथा शिशिरकाले प्रातस्तमये तडागादिशीतजलमवगाह्य बहिर्निर्गतस्य शीतवातोपघातेन युगपत् समुत्पन्नसर्वाङ्गीणदुःखस्यापि स्वानुभवमानसप्रत्यक्षप्रसिद्धत्वात् । तस्माज्जीवोऽणुपरिमाणाधिकरणोऽपि न भवति । तत्प्रसाधकप्रमाणाभावात् । अपि तु शरीरनामकर्मोदयजनितस्थूलसूक्ष्मशरीरमात्रपरिमाणाधिकरण एव पारिशेयादवतिष्ठते । तत्र सर्वत्रैव पादाभ्यां गच्छामि पाणिभ्यामाहरामि चक्षुा पश्यामि श्रोत्राभ्यां शणोमि ज्ञाताहं सुख्यहं दुःख्यहम् इच्छाद्वेषप्रयत्नवानहमित्यहमहमिकया निर्दुस्वानुभवमानसप्रत्यक्षेण प्रतीयमानत्वात् । तथा आत्मा अणुपरिमाणो न भवति स्ववर्तमानावासे युगपत् सर्वत्र स्वासाधारणगुणाधारतया उपलभ्यमानत्वात् घटाद्यन्तर्गतप्रदीपभासुराकारवत् । तथा आत्मा अणुपरिमाणो न भवति ज्ञातृत्वात् भोक्तृत्वात् प्रयत्नवत्वात् सुखवत्वात् दुखित्वात् व्यतिरेके परमाणुवदिति।। सब शरीर में एक साथ सुख का अनुभव होता है तथा शिशिरऋतु में ठंडे पानी में नहाने पर हवा के आघात से सब शरीर में एक साथ दुःख का अनुभव होता है - ये बातें प्रत्यक्ष प्रमाण से ही स्पष्ट हैं। अतः जीव को अणु आकार का मानना भी उचित नही है। शरीरनामकर्म के उदय से जैसा स्थूल या सूक्ष्म शरीर होता है उतना ही जीवका आकार होता है। मैं चलता हूं, लेता हूं, देखता हूं - आदि आत्माविषयक प्रतीति पूर्ण शरीर में होती है अतः जीव शरीरव्यापी सिद्ध होता है। जिस तरह घट में दीपक का प्रकाश सर्वत्र समान रूप से प्रतीत होता है उसी तरह शरीर में सर्वत्र अपने असाधारण गुणों का आधार जीव प्रतीत होता है अतः जीव शरीरव्यापी है । जीव ज्ञाता है, भोक्ता है, सुखदुःख तथा प्रयत्न से युक्त है - ये सब बातें परमाणु में नही होती अतः जीव अणु आकार का नही है। . १ सुखदुःखादि । २ यस्तु अणुपरिमाणो भवति स ज्ञाता न भवति यथा परमाणुः इत्यादि।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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