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________________ १८६ विश्वतत्त्वप्रकाशः [ ५४ गङ्गायां घोषः १ अङ्गुल्य हस्तियूथशतमास्ते' इत्यादिवदिति चेत् न । संकेतवशात् सर्वत्र शब्दानामर्थप्रतिपत्तिजनकत्वस्यैव वाचकत्वात् रे । गङ्गायां घोषः अङ्गुल्य हस्तियूथशतमास्ते इत्यादिष्वपि सामीप्यौप चारिकयो रित्यधिकरणादिसंकेतादर्शप्रतिपत्तिजनकत्वेन वाचकत्वमेवोपलक्षकत्वेऽपि । ननु सामीप्यौपचारिकाद्यर्थानां प्रमाणगोचरत्वेन तत्र संकेतसंभवादर्थप्रतिप्रतिजनकत्वसंभवाद् वाचकत्वमस्तु, ब्रह्मस्वरूपस्य तु प्रमाण गोचरत्वाभावेन तंत्र शब्दसंकेतासंभवादुपनिषवाक्यानामपि ब्रह्मस्वरूपप्रतिपत्तिजनकत्वं न जाघटयते । कुतः ' यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह' ( तैत्तिरीय उ. २-४ - ५ ) इति श्रुतेरिति चेत् तर्हि तदुपनिषवाक्यानां पठनश्रवणादिकमनर्थकभेव स्यात् । कुतः । तदर्थप्रतिपत्तेः केनापि प्रकारेणासंभवात् । है, अंगुली पर सौ हाथियों के झुंड हैं आदि वाक्यों के समान ये वाक्य सूचक हैं - यह कथन भी उचित नहीं । संकेत के बल से शब्दों से अर्थ का ज्ञान होता है - इसे ही शब्दों का वाचक होना कहते हैं। गंगा में घोष हैं इस वाक्य में गंगा के समीप घोष है इस अर्थ की प्रतीति होती है तथा अंगुली पर सौ हाथियों के झुंड हैं इस वाक्य में हाथियों पर अधिकार के उपचार का बोध होता है - अतः ये दोनों चाक्य उपलक्षक होने पर भी वाचक हैं ही । अतः उपनिपवाक्यों से ब्रह्म का ज्ञान होता हो तभी उन्हें उपलक्षक या वाचक कहा जा सकेगा । समीप होना अथवा उपचार से अर्थ प्रमाण से ज्ञात होते हैं अतः शब्दों से ज्ञात होते हैं, किन्तु ब्रह्म का स्वरूप प्रमाण का विषय नही है अतः शब्दों से ज्ञात नही होता, कहा भी है. ब्रह्मस्वरूप से मन के साथ वाणी भी उसे पाये विना ही निवृत्त होती है ' यह कथन भी अयोग्य है । यदि ब्रह्म शब्दों - उपनिषद्वाक्यों से ज्ञात नही होता तो उपनिषदों का पढना, सुनना व्यर्थ ही है । 6 - 1 १ घोष आभीरपल्ली स्यात् । २ अत्र वाक्ये उपदर्शकत्वमेवास्ति न तु वाचकत्वम् | ३ अर्थप्रतीतिजनकत्वमेव वाचकत्वं कथ्यते । ४ गङ्गायां घोष इति सामीप्याधिकरणम् अङ्गुल्य हरियूथशतमास्ते इत्युपचारिका धिकरणम् । ५ ब्रह्मणः । ६ ब्रह्मस्वरूपं मनसा अप्राप्यम् ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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