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________________ मायावादविचारः १७१ स्वसंवेद्यं चेतनं च स्वप्रतिबद्धव्यवहारे संशयादिव्यवच्छेदार्थ परानपेक्षत्वात् स्वरूपवदिति च। ' तथा आत्मा द्रव्यत्वव्यतिरिक्तसत्तावान्तरसामान्यवान् विशेषगुणवत्त्वात् घटादिवदित्यात्मनो नानात्वसिद्धिः। ननु आकाशस्य विशेषगुणवत्त्वेऽपि द्रव्यत्वस्यापरसामान्यवत्स्वाभावात् तेन हेतोर्व्यभिचार इति चेन्न। आकाशस्य विशेषगुणवत्स्वाभावात् । अथ आकाशविशेषगुणःशब्दोऽस्तीति चेन्न । शब्द आकाशगुणो न भवति अस्मदादिबाह्येन्द्रियग्राह्यत्वात् रूपादिवदिति । आकाशं बाह्यन्द्रियग्राह्यगुणवन्न भवति विभुत्वात् स्पर्शादिरहितत्वात् निरवयवत्वात् नित्यत्वात् अखण्डत्वात् कालवदिति शब्दस्य प्रमाणादेव आकाशगुणत्वनिषेधात् । - ___ अथ आत्मनो नित्यानुभवस्वरूपत्वाद् विशेषगुणवत्त्वमसिद्धमिति चेन्न। ज्ञानादिविशेषगुणवत्त्वसभावात् । ननु ज्ञानादीनां करणवृत्तिरूपत्वेन गुणत्वमसिद्धमिति चेन्न । ज्ञानादयो गुणाः कर्मान्यत्वे सति निर्गुणत्वात् , अवयविक्रियान्यत्वे सत्युपादानाश्रितत्वात् रूपादिवदिति ज्ञानादीनां गुणत्वसिद्धेः। ननु ज्ञानादीनां गुणत्वेऽपि न तेऽप्यात्मविशेषगुणाः आत्मनो निर्गुणत्वात् , कुतो निर्गुणत्वमित्युक्ते 'साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च' इति श्रुतेरिति चेन्न । आत्मा ज्ञानादिगुणवान् ज्ञातृत्वात् व्यतिरेके पटादि आत्मा ( ज्ञान आदि ) विशेष गुणों से युक्त है इस से स्पष्ट है कि उस में द्रव्यत्व तथा सत्ता के अतिरिक्त एक सामान्य ( आत्मत्व ) है। आत्मत्व का अस्तित्व तभी संभव है जब आत्मा अनेक हों। आकाश में शब्द यह विशेष गुण है किन्तु आकाश अनेक नहीं हैं यह आपत्ति उचित नही। शब्द आकाश का गण नही है क्यों कि यह बाह्य इन्द्रिय से ज्ञात होता है । आकाश व्यापक है, स्पर्श आदि से रहित है, निरवयव है, नित्य है, अखण्ड है अतः काल के समान आकाश के गुण भी बाह्य इन्द्रियों से ज्ञात नही हो सकते । अतः शब्द आकाश का गुण नही है । नित्य अनुभव ही आत्मा का स्वरूप है, ज्ञान करणवृत्तिरूप है ( साधनभूत है ) अतः वह आत्मा का विशेष गुण नही - यह आपत्ति भी उचित नही है । ज्ञान आदि गुण हैं क्यों कि वे क्रिया से भिन्न हैं,
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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