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________________ १६८ विश्वतत्त्वप्रकाशः [ ४९ - १ तथा हि । ऊर्धदेशे आकाशे वायुपाशाधिकरणत्वेन विम्बस्या घोदेशे भूतलाद्यधिकरणत्वेन देशभेदेन पात्रभेदेन जलभेदेन प्रतिबिम्बानां प्रदर्शनात् बिम्बप्रतिबिम्बाभिधानप्रत्ययव्यवहारभेदाच्च तदुभेदः । अथ तेषां समानाकारत्वादेकत्वमिति चेत् तर्हि नक्षत्रबिम्बानां समानाकारत्वादेकत्वं स्यात् । तथा चाश्विन्यादिभेदो न स्यात् । न चैवम् । तद्भेदः तदुदयादि प्रदर्शनात् । ननु यथा प्रतिबिम्बादीनां भ्रान्तत्वेनासत्यत्वात् बिम्बमेव परमार्थसत् तथा प्रमातृणामप्यसत्यत्वात् परं ज्योतिरेकमेव परमार्थसदिति चेन्न । प्रतिबिम्बानां सत्यत्वप्रसाधकप्रमाणानां सद्भावात् । तथा हि । प्रतिबिम्बमभ्रान्तम् अबाध्यत्वात् बाधकेन विहीनत्वात् रसचित्रवत् । अथ अन्यदेशस्थितानां प्रतिबिम्बदर्शनाभावाद् भ्रान्तत्वमिति चेत् तर्हि रसचित्राणामपि भ्रान्तत्वमस्तु अन्यत्र स्थितानामदर्शनाविशेषात् । तस्मा इन दो भिन्न शब्दों का प्रयोग भी भेद का ही सूचक है । सब प्रतिबिम्ब समान हैं अतः उन्हें एक कहा जाता है - यह कथन भी सदोष है । इस तरह तो सब तारकाओं को एकही मानना होगा क्यों कि वे सब समान आकार की हैं। तब उन में अश्विनी, भरणी, आदि भेद करना सम्भव नही होगा । किन्तु तारकाओं का उदय आदि भिन्नभिन्न होता है अतः उन्हें भिन्न भिन्न माना जाता है । उसी प्रकार बिम्ब-प्रतिबिम्बों को भी भिन्न ही मानना चाहिये । प्रतिबिम्ब भ्रान्त-असत्य होते हैं और बिम्ब ही वास्तविक सत्य होता है उस प्रकार प्रमाता - जीव भ्रान्त-असत्य हैं तथा परंज्योति ब्रह्म ही वास्तविक सत्य है यह कथन भी सदोष है । प्रतिबिम्बों का ज्ञान बाधित नही होता अतः उसे भ्रान्त कहना निराधार है। जिस तरह विभिन्न रस अबाधित अतएव सत्य हैं उसी तरह प्रतिबिम्ब भी अबाधित अतएव सत्य होते हैं। एक प्रदेश में स्थित प्रतिबिम्ब अन्यत्र नही दिखाई देता अतः वह भ्रान्त है यह कहना भी ठीक नहीं - एक स्थान का रस भी १ कुत्सितो वायुर्वायुपाशः वायुविशेषः । २ चन्द्रादिविबस्य दर्शनात् । ३ बिम्बप्रतिबिम्बानां भेदः । ४ बिम्बप्रतिबिम्बानाम् । ५ आदिशब्देन स्वामिफलादिग्रहणम् । ६ यथा रस एक एव तस्य प्रतिबिम्बः कटुतिक्तादयः ते न भ्रांताः तथा चित्रप्रतिबिम्बाः अनेके न भ्रांताः ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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