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________________ १५८ विश्वतत्त्वप्रकाशः [४७ भूमण्डलादीनामेवेदानीन्तनप्रमातृभिर्दर्शनात् । ततःसिद्धं प्रपञ्चो अबाध्यः बाधकेन विहीनत्वात् परमात्मवदिति । तथा प्रपञ्चवेदनं सत्यम अविसंवादित्वात् गृहीतार्थाव्यभिचारित्वात् अबाध्यत्वात् बाधकेन विहीनत्वात् ब्रह्मस्वरूपप्रतिपत्तिवदिति च । [४७. अद्वैतवादनिरासः ।] अथ मतं प्रपञ्चस्य सत्यत्वेऽपि भेदग्राहकप्रमाणाभावादद्वैतमेव तत्त्वम। ननु प्रत्यक्ष मेदग्राहकं प्रमाणमस्तीति चेत् तत् प्रत्यक्षं भेदमेव गृह्णाति वस्त्वपि । यदि वस्त्वपि गृह्णीयात् तदा मेदग्रहणपूर्वकं वस्तु गृह्णीयात् , वस्तुग्रहणपूर्वकं भेदं गृह्णीयात् युगपदुभयं बा गृह्णीयात् । न तावदाद्यो विकल्पःसंभाव्यते। एतस्मादस्य भेदोऽस्तीत्यवधिः अवधीयमानवस्तु परिज्ञानमन्तरेण भेदज्ञानानुपपत्तेः। अत एव भेदग्रहणपूर्वकं वस्तु गृह्णातीति द्वितीयविकल्पोऽपि नोपपद्यते। तथा तृतीयपक्षेऽपि वस्तुग्रहणसमये भेदग्रहणाभावादद्वैतसिद्धिरेव स्यात् । तथा च चतुर्थपक्षोऽपि न योयुज्यते । तयो से प्रपंच बाधित हुआ यह कहना ठीक नही । या तो उन्हें साक्षात्कार ही नही हुआ है, अथवा उस साक्षात्कार से प्रपंच बाधित नहीं हुआ है। जो पृथ्वी आदि व्यास के समय थे वे ही अब तक बने हुए देखे जाते हैं अतः प्रपंच का निर्बाध अस्तित्व सिद्ध होता है । प्रपंच का ज्ञान अविसंवादी है, ज्ञात अर्थ के स्वरूप के अनुकूल है तथा अबाधित है अतः वेदान्तियों के ब्रह्मज्ञान के समान ही प्रपंच का ज्ञान भी सत्य सिद्ध होता है। ४७. अद्वैतवाद का निरास --प्रपंच के सत्य सिद्ध होने पर भी भेद का ज्ञान किसी प्रमाण से नही होता अतः अद्वैत ही तत्त्व है यह वेदान्तियों का कथन है। इस का विवरण वे इस प्रकार देते हैं। प्रत्यक्ष से भेद का ज्ञान होना संभव नही। प्रत्यक्ष से सिर्फ भेद का ज्ञान होता है, या वस्तु का भी ज्ञान होता है ? यदि वस्तु का भी ज्ञान होता है तो पहले भेद का ज्ञान होता है, पहले वस्तु का ज्ञान होता है, या दोनों का एकसाथ ज्ञान होता है ? इन में पहला पक्ष संभव नहीं क्यों कि जब तक वस्तु का ज्ञान नही होगा तबतक इस वस्तु से उस वस्तु में भेद है यह ज्ञान कैसे होगा ? दूसरे पक्ष में पहले वस्तु का ज्ञान होता है - १ वस्त्वपि गृह्णाति । २ मर्यादीक्रियमाणवस्तु । ३ वस्तुभेदयोः ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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