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________________ प्रस्तावना का समय १२ वीं सदी है। वेद प्रामाण्य की चर्चा में लेखक ने तुरुष्कशास्त्र को बहुजनसम्मत कहा है तथा वेदों के हिंसाउपदेश की तुलना तुरुष्कशास्त्र से की है। तुरष्कशास्त्र से यहां मुस्लिमशास्त्र से तात्पर्य है यह स्पष्ट ही है। उत्तर भारत में मुस्लिम सत्ता का व्यापक प्रसार सन ११९२ से १२१० तक हुआ तथा सुलतान इलतुतमश के समय सन १२१०से१२३६ तक यह सत्ता दृढमूल हुई (दक्षिण भारत में मुस्लिम सत्ता का विस्तार इस से एक सदी बाद अलाउद्दीन खलजी के समय हुआ)। अतः तुरुष्कशास्त्र को बहुसम्मत कहना तेरहवीं सदी के मध्य के पहले सम्भव प्रतीत नही होता । इस तरह भावसेन के समय की पूर्वावधि स्थूलतः सन १२५० कही जा सकती है । सन १२५० से १३६७ तक की इन मर्यादाओं को और अधिक संकुचित करने के दो साधन हैं। एक तो यह कि लेखक ने तेरहवीं सदी के अन्तिम चरण के नैयायिक विद्वान केशवमिश्र की तर्कभाषा का कोई उपयोग नही किया है । अतः वे केशवमिश्र के किंचित पूर्व के अथवा समकालीन होने चाहिए । दूसरा साधन यह है कि लेखक के समाधिलेख की लिपि चौदहवीं सदी की अपेक्षा तेरहवीं सदी के अधिक अनुकूल है । अतः भावसेन का समय प्रायः निर्बाध रूप से तेरहवीं सदी का उत्तरार्ध (स्थूलतः १२५० से १३००) निश्चित होता है। ४. ग्रन्थ का नाम इस ग्रन्थ की पुष्पिका में इस का नाम · विश्वतत्त्वप्रकाश मोक्षशास्त्र : इस प्रकार दिया है तथा यह ' अशेषपरमततत्त्व विचार' उस का पहला परिच्छेद है ऐसी सूचना दी है। शायद अगले परिच्छेद में स्वमत का समर्थन करने की लेखक की इच्छा थी किन्तु वह भाग लिखा गया या नही यह निश्चित नही है। मोक्षशास्त्र यह नाम १) मूल पृ. ८०; २) मूल पृ.९८. ३) इस के स्थान में उन्हों ने दसवीं सदी के न्यायसार का उपयोग किया है यह ऊपर बताया हो है। केशव मिश्र ने प्रमाण का 'प्रमाकरणं प्रमाणम्' यह लक्षण दिया है इस का खण्डन प्रथमतः धर्मभूषण की न्यायदीपिका में प्राप्त होता है। ४) यह मत हमें उटकमंडस्थित प्राचीन लिपिविद् कार्यालय के सहायक लिपिविद श्री. रित्ती से प्राप्त हुआ। वहां के उपप्रमुख डॉ. गै ने भी इस की पुष्टि की है।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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