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________________ १३० विश्वतत्त्वप्रकाशः [४१ विरोधादिति-तदप्यनुचितम् । हेतोः कालात्ययापदिष्टत्वात् । तत् कथम्। इदं शुक्तिशकलमेव एतावत्कालपर्यन्तं रजतत्वेन प्रत्यभादिति प्रत्यभिज्ञा. प्रत्यक्षेण पक्षस्य बाधितत्वात् । तस्मात् पुरोदेशे निवेशि वस्तु रजतत्वेन प्रतिभासते रजतार्थिनो नियमेन प्रवृत्तिविषयत्वात् पुरोदेशे रजतेच्छाजनकत्वात् समन्तरजतवत् । तथा पुरोवर्ति रजतत्वेन प्रत्यभात् नेदं रजतमिति बाधकस्यान्यथानुपपत्तेरिति च। ___ यदप्यन्यदवोचत्-तस्मादिदमंशग्रहणरजतांशस्मरणयोः स्वरूपेण विषयेण च भेदाग्रहणादिदं रजतमिति पुमान् प्रवर्तते तयोर्भेदग्रहणान्नेदं रजतमिति निवर्तत इति-तदप्यनात्मशभाषितम्। ग्रहणस्मरणयोर्भदस्य अग्रहणासंभवात् । कुतः स्वयंसंवेद्यमानग्रहणस्मरणयोस्तद्विषयभूततया प्रतीयमानयोरिदमंशरजतांशयोश्च स्वरूपभूतमेदस्यापि स्वत एव प्रतिभासका आधार नही होती तो उसे उठाने की इच्छा तथा समीप पहुंचने की प्रवृत्ति क्यों होती ? स्मरणरूप ज्ञान से एसी प्रवृत्ति सम्भव नही है। यह प्रवृत्ति ठीक वैसे ही है जैसे चांदी के प्रत्यक्ष ज्ञान से होती है - अतः उस का आधारभूत ज्ञान भी चांदी का ज्ञान ही समझना चाहिए - स्मरण नही। जिस तरह 'यह कमल नीला है ' इस ज्ञान में कमल और नीला ये दोनों अंश एक ही विभक्ति में होते हैं उसी तरह 'यह वस्तु चांदी है। इस ज्ञानमें वस्तु और चांदी ये दोनों अंश एकही विभक्ति में होते हैं - ये दोनों ज्ञान वर्तमान विषय के हैं - भूतपूर्व ज्ञान के स्मरण नही हैं । — यह सीप ही अबतक चांदी प्रतीत हो रही थी। इस भ्रमनिरास से स्पष्ट है कि सीप और चांदी-दोनों ज्ञानों का आधार सीप ही है। यह कुछ है ' इस वर्तमान ज्ञान से चांदी के स्मरण का भेद ज्ञात न होने से पुरुष सीप को चांदी समझता है तथा यह भेद ज्ञात होने पर उस का भ्रम दूर होता है - यह कथन भी उचित नही । 'यह कुछ है' इस ज्ञान का जिसे संवेदन होता है उसे ही चांदी के स्मरण का भी संवेदन होता है - ये दोनों ज्ञान स्वसंवेद्य हैं । अतः यदि
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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