SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४ विश्वतत्त्वप्रकाशः २. लेखक के अन्य ग्रन्थ प्रस्तुत विश्वतत्त्वप्रकाश के अतिरिक्त भावसेन के नौ ग्रन्थ ज्ञात हैं । इन में सात तर्कविषयक तथा दो व्याकरणविषयक हैं । इन का परिचय इस प्रकार है - प्रमाप्रमेय - इस ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रति हुम्मच के श्रीदेवेन्द्रकीर्ति ग्रन्थभांडार में है । इस का आरम्भ तथा अन्त इस प्रकार है - (आ.) वर्धमानं सुरराज्यपूज्यं साक्षात्कृता शेषपदार्थतत्त्वम् । सौख्याकरं मुक्तिपतिं प्रणम्य प्रमाप्रभेयं प्रकटं प्रवक्ष्ये || (अ.) इति परवादि गिरिसुरेश्वर श्रीमद्भावसेनत्रै विद्यदेव विरचिते सिद्धान्तसारे मोक्षशास्त्रे प्रमाणनिरूपणः प्रथमः परिच्छेदः १ ॥ इस से ज्ञात होता है कि यह सिद्धान्तसार - मोक्षशास्त्र का पहला प्रकरण है । सम्भवतः अगले प्रकरण में प्रमेय विषय की चर्चा करने का लेखक का विचार रहा होगा । हम आगे बतलायेंगे कि प्रस्तुत ग्रन्थ विश्वतत्त्वप्रकाश भी इसी तरह एक बडे ग्रन्थ का पहला प्रकरण मात्र है । लेखक ने इन दोनों ग्रन्थों को अधूरा नही छोडा होगा । अतः इन के उत्तराधों की खोज आवश्यक है । कथाविचार- - प्रस्तुत ग्रन्थ में लेखक ने तीन स्थानों पर इस ग्रन्थ का उल्लेख किया है (पृ. ९३, २४३ तथा २४८) । इस में दार्शनिक वादों से सम्बन्धित सभी विषयों का - वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति, निग्रहस्थान आदि का विस्तृत विचार किया है ऐसा इन उल्लेखों से प्रतीत होता है । इस की हस्तलिखित प्रतियों का कोई विवरण प्राप्त नही हुआ । - शाकटायनव्याकरणटीका - इस ग्रन्थ का उल्लेख मध्यप्रान्त - हस्तलिखित ग्रन्थसूची की प्रस्तावना में डा. हीरालाल जैन ने किया है (पृ. २५ )। सम्भवतः इसी के आधारपर जैन साहित्य और इतिहास १) श्रीमान् के. भुजबल शास्त्री से यह प्रतिपरिचय प्राप्त हुआ है। प्रति में ७ पत्र प्रतिपत्र १२ पंक्ति एवं प्रतिपंक्ति १४६ अक्षर हैं ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy