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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः [२८ अतीतानागतौ कालौ वेदकारविवर्जितौ। कालशब्दाभिधेयत्वादिदानींतनकालवत् ॥ (तत्त्वसंग्रह पृ. ६४३) इति वेदस्यापौरुषेयत्वसिद्धिरिति चेन्न। बौधायनापस्तम्बाश्वलायनयाशवल्क्यादिप्रवर्तमानकालैहेतोयभिचारात्। तेषां कालशब्दाभिधेयत्वसद्भावेऽपि वेदकारविवर्जितत्वाभावात् । अथ तत्कालानामपि वेदकारविवर्जितत्वं प्रसाध्यत इति चेन्न । कल्पसूत्रकर्तुर्बोधायनस्य आपस्तम्बसूत्रकर्तुरापस्तम्बस्य आश्वलायनशाखाकर्तुराश्वलायनस्य काण्वशाखादिकर्तुर्याज्ञवल्क्यादेस्तत्काले सद्भावेन पक्षे साध्याभावो निश्चित एव स्यात् । अथ तेषां तत्कर्तृत्वं केन प्रमाणेन ज्ञायत इति चेन्न। व्यासादीनां भारतादिकर्तृत्वं येन प्रमाणेन ज्ञायते तेनैवेति संतोष्टव्यम्। अथ भारतादिग्रन्थावसाने ग्रन्थकारः स्वकीयनाममुद्रां व्यधादिति चेत् तदत्राप्यस्ति। 'नारायणं प्रविशतीत्याह भगवान् बौधायनः' इत्यादीनां कल्पसूत्रादिषु __यह काल वेदकर्ता से रहित है उसी प्रकार सब काल वेदकर्ता से रहित होते हैं अतः अतीत समय और आनेवाले समयमें भी वेद के कर्ता नहीं हो सकते यह अनुमान प्रस्तुत किया गया है। किन्तु यह भी पूर्वोक्त दोष से दूषित है। विविध वैदिक ग्रन्थों के कर्ता बौधायन, आपस्तम्ब, आश्वलायन, याज्ञवल्क्य आदि जिस अतीत समय में थे उस समय को वेदकर्ता से रहित कैसे कहा जा सकता है? जैसे महाभारत आदि ग्रन्थों के रचयिता व्यास आदि ऋषि थे उसी प्रकार विविध वैदिक ग्रन्थों के रचयिता आपस्तम्ब आदि ऋषि थे अतः इन दोनों में फर्क करना ठीक नही है। भारतादि ग्रन्थों के अन्त में ग्रन्थकार के नाम पाये जाते हैं वैसे वैदिक ग्रन्थों के अन्त में नही पाये जाते अतः उन ग्रन्थों का कोई कर्ता नही यह कहना भी उचित नही। एक तो कई वैदिक ग्रन्थों में कर्ता का नाम पाया जाता है - जैसे कि बोधायन कल्पसूत्र में ' वह नारायण में प्रवेश करता है ऐसा भगवान् बौधायन ने कहा है ' यह उल्लेख है। दूसरे सिर्फ नाम न मिलने से कोई ग्रन्थ कर्तासे १ आपस्तम्बादि । २ वेदकारविवर्जितौ इति साध्यम् । ३ कल्पसूत्रादीनां आपस्तम्बादिऋषिकर्तृत्वम् ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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