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________________ ६८ विश्वतत्त्वप्रकाशः [२७ बुद्धोऽपि सर्वज्ञो न भवति क्षणिकत्वात् प्रदीपशिखावत्, प्रत्यक्षादि'विरुद्धवक्तृत्वात् उन्मत्तवत् । अथ बुद्धस्य प्रत्यक्षादिविरुद्धवक्तृत्वमसिद्ध. मिति चेन्न । निर्दुष्टप्रत्यक्षप्रसिद्धस्य स्थिरस्थूलसाधारणाकारस्यारे. सत्यत्व प्रतिपादनात् । अप्रामाणिकस्य क्षणिकनिरंशविविक्तस्यैव' सत्यत्वप्रतिपादनाच्च । तस्माद् ब्रह्मविष्णुमहेश्वरबुद्धादीनाम् असर्वज्ञत्वान्न वन्द्यत्वं न पूज्यत्वं न स्तुत्यत्वम् । अपि तु जिनेश्वरस्यैव वन्द्यत्वं स्तुत्यत्वं पूज्यत्वं च । कथं जिनेश्वरस्यैव सर्वशत्वमिति चेत् 'यः सर्वाणि चराचराणि' इत्यादि ग्रन्थेन विस्तरतो जिनेश्वरस्य सर्वशत्वं प्रत्यतिष्ठि'षामेत्यत्रोपारंसिष्म। [२७. सर्वज्ञाभावनिरासः।] यदप्यभ्यधायि चार्वाकण-तस्मात् सर्वशो नास्ति अनुपलब्धेः खरविषाणवदिति, तदप्यसत् । हेतोरसिद्धत्वात् । सर्वज्ञोपलब्धौ प्रागेवागमानुमानादिप्रमाणोपन्यासात् । यदप्यन्यदनूद्य निरास्थात्-अत्रेदानीमस्मदा. दिभिरनुपलम्भेऽपि देशान्तरे कालान्तरे पुरुषान्तरैरुपलभ्यते इति चेन्न, अनुमानविरोधात् , तथा हि, वीतो देशः सर्वशरहितः देशत्वात् एतद्देशवत् बुद्ध भी सर्वज्ञ नही है क्यों कि ( उन्हीं के मतानुसार ) वे क्षणिक हैं ( तथा एकही क्षण जिनका अस्तित्व है वे सर्वज्ञ कैसे हो सकते हैं ? )। दूसरे, बुद्ध ने प्रत्यक्षादि प्रमाणों से विरुद्ध तत्त्वों का उपदेश दिया है - वे स्थिर, स्थल तथा साधारण पदार्थों को असत्य मानते हैं तथा सर्वथा क्षणिक, निरंश और विशेष को ही सत्य पदार्थ मानते हैं। इस से भी उन का सर्वज्ञ न होना स्पष्ट होता है। जैन दर्शन के मतानुसार सर्वज्ञ देव वन्द्य, पूज्य, तथा स्तुत्य हैं । अतः ब्रह्मदेव, विष्णु, शिव या बुद्ध वन्ध, पूज्य, या स्तुत्य नही हैं क्यों कि वे सर्वज्ञ नही हैं। २७. सर्वज्ञके अभाव का निरास-चार्वाकों ने कहा है कि सर्वज्ञ का ज्ञान किन्ही प्रमाणों से नही होता अतः उस का अस्तित्व ही नही है। इस के उत्तर में हमने सर्वज्ञ साधक अनुमान तथा आगम प्रमाणों को प्रस्तुत किया ही है। इस प्रदेश के समान सभी प्रदेश सर्वज्ञरहित हैं, १ प्रत्यक्षादिभिः सह । २ वस्तुनः । ३ वस्तुनः । ४ वयं जनाः स्थापितवन्तः । ५ उपरम्यते।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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