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________________ [ २३ दुराचारयोरभावात् कथमीश्वरमन्तरेण पुण्यपापसंभव इति चेन्न । ईश्वरचिन्तां विहाय काम्यानुष्ठाने प्रवर्तमानानां मीमांसकादीनां काम्यापूर्वात् ' स्वर्गादिप्राप्तिनिश्चयात् । अथ तनिश्चयः कुत इति चेत्, अग्निहोत्रं जुहुयात् स्वर्गकामः ज्योतिष्टोमेन स्वर्गकामो यजेत । ariat निर्वपेद् वृष्टिकामः पुत्रकाम्येष्टया पुत्रकामो यजेत ॥ इत्यादिश्रुतिप्रामाण्यात् । ५८ विश्वतत्त्वप्रकाशः सवत्सारोमतुल्यानि युगान्युभयतोमुखीम् । दातास्याः स्वर्गमाप्नोति पूर्वेण विधिना ददत् ॥ ( याज्ञवल्क्यस्मृति १- ९ - २०६ ) इत्यादिस्मृतिप्रामाण्याच्च । तथा तच्चिन्तां विहाय स्तेयब्रह्महत्यादिनिविद्धानुष्ठाने प्रवर्तमानानां दुरितापूर्वा' नारकादियातनानिश्चयात् । तत् कथम्, सुवर्णमेकं गामेकां भूमेरप्येकमङ्गुलम् । हरन्नरकमाप्नोति यावदाभूतसंप्लवः ॥ 1 ईश्वर का विरोध यही दुराचार है यह कथन भी ठीक नही । मीमांसक ईश्वर का आराधन आवश्यक नही मानते फिर भी काम्य कर्मों से उन्हें स्वर्गादि प्राप्त होते हैं ऐसा कहा जाता है- ' जिसे स्वर्ग की इच्छा हो वह अग्निहोत्र से हवन करे, या ज्योतिष्टोम यज्ञ करे, वृष्टि की इच्छा हो चह मेंढकी का बलि दे तथा पुत्र की इच्छा हो वह पुत्रकामेष्टि से यज्ञ करे । ' ऐसा वेदवाक्य है । तथा स्मृतिवाक्य भी है - ' पूर्वोक्त विधि से बछडेसहित गाय का दान करे उसे उस गायके जितने केश हो उतने युगों तक स्वर्ग प्राप्त होता है । ' इसी प्रकार ईश्वर की चिन्ता न कर चोरी, ब्रह्महत्या आदि पातक करते हैं उन्हें नरक आदि की यातनाएं भी प्राप्त होती ही हैं । जैसा कि स्मृतिवाक्य है - ' एक सुवर्ण, एक गाय या एक अंगुल भूमि का भी जो हरण करता है वह प्रलयकाल तक नरक में रहता है । ' तथा वेदवाक्य भी है। ' जो ब्राह्मण को निन्दावचन) कहे उसे सौ मुद्राएं दण्ड देना चाहिए तथा जो ब्राह्मण का वध करे - १ काम्यं यज्ञादि तच्च तदपूर्वम इति अदृष्टं तस्मात् । २ दर्दुरं जुहुयात् वृष्टिकामः । ३ प्रसूतकाले । ४ यः ददत् सः । ५ ईश्वर । ६ तस्करादीनाम् । ७ अदृष्टात् । ८ वाल २७ रति १-३ ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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