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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः [२१[ २३. अदृष्टस्व ईश्वराधीनत्वनिषेधः।] - यदैव सर्वज्ञः सर्वान् परिज्ञाय कारयति चेत् सर्वेषां सौख्यं सुखसाधनं च ज्ञात्वा प्रतिपाद्य कारयेत् । न दुःखं तत्साधनं च। तथा च लोके नारकतिर्यग्दरिद्रादीनामभाव एव स्यात् । अथ जीवानामदृष्टं शात्वा तत्तददृष्टानुरूपं सुखदुःखादिकं तत्साधनं च कार्य स्यादिति महेश्वरः चिन्तयति तञ्चिन्तामात्रेण सकलकार्यनिष्पत्तिरिति तस्य स्वातन्त्र्यकर्तृत्वमस्तीति चेन्न । प्राणिनामदृष्टोदयादेव भोगभोग्यवर्गादीनां निष्पत्तिसंभवेन महेश्वरचिन्तया प्रयोजनाभावात्। अथादृष्टस्याचेतनत्वात् कुठारवद् बुद्धिमत्प्रेरणामन्तरेण स्वकार्ये प्रवर्तनासंभवात् तच्चिन्तया भाव्यमिति चेन । अस्मदादीनामपि यस्य यादृशमदृष्टं तस्य तादृग भोगो भोग्यवर्गश्च स्यादिति चिन्तयापि तत्तत्कार्यनिष्पत्तिसंभवेन तच्चिन्तया प्रयोजनाभावात् । ततस्तत् परिकल्पनं व्यर्थमेव स्यात् । .अथादृष्टं स्वसाक्षा २३. अदृष्टका ईश्वराधीनत्व--यदि ईश्वर सर्वज्ञ है और सर्वकर्ता भी है तो वह सब जीवों के लिए सुख के ही साधन निर्माण करता-दुःख के साधन का निर्माण उसके लिए उचित नही है। जीवों के अदृष्ट के ( पुण्य-पाप के) अनुसार ईश्वर सुख-दुःख के साधन निर्माण करने की इच्छा करता है तथा ईश्वर की इच्छा से ही वे साधन निर्माण होते हैं अतः ईश्वर स्वतन्त्र भाव से जगत्कर्ता है यह कथन भी युक्त नही । प्राणियों को अपने अपने अदृष्ट के उदय से ही सुख-दुःख और उसके साधन प्राप्त होते हैं अतः उस में ईश्वर की इच्छा निरर्थक होगी। अदृष्ट अचेतन है अतः किसी बुद्धिमान की प्रेरणा के बिना वह फल नही दे सकता अतः ईश्वर की प्रेरणा आवश्यक है यह समाधान भी उचित नही। हमारे जैसे सर्वसाधारण जीवों की प्रेरणा से भी अदृष्ट फल दे सकता है यह कहा जा सकता है-प्रेरणा ईश्वर की ही हो यह आवश्यक नही। अदृष्ट को जो साक्षात जानता हो वही उसको प्रेरणा दे सकता है अतः ईश्वर की प्रेरणा आवश्यक है यह कथन भी युक्त १ प्राणिनाम् । २ न कारयेत् । ३ सदृशम् । ४ अस्मदादीनां चिन्तया । ५ ईश्वर।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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