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________________ -१०] चार्वाक-दर्शन-विचारः अदृष्टरहितत्वासिद्धेः । अथ जीवादृष्टात् तद्भोगायतनस्य कथं स्तुतिपूजादिकमिति चेदुच्यते । भोक्तुरदृष्टाद् भोगो भोग्यवर्गश्च निष्पद्यते । तत्र स्वात्मनि वर्तमानसुखदुःखसाक्षात्कारो भोगः। इन्द्रियान्तःकरणानुकूलप्रतिकूलाभ्यामात्मनः सुखदुःखोत्पादको भोग्यवर्गः। तत्र तत्पुण्योदयात् शुभशरीरेन्द्रियान्तःकरणानां तदनुकूलपदार्थानां च निष्पत्तिः प्राप्तिरनु भुक्तिः तद्विपरीता नामनिष्पत्तिरप्राप्तिरननुभुक्तिः सुखसाक्षात्कृतिश्च भवति । तत्पापोदयादशुभशरीरेन्द्रियान्तःकरणानां प्रतिकूलपदार्थानां च निष्पत्तिः प्राप्तिरनुभुक्तिस्तविपरीतानाम निष्पत्तिरप्राप्तिरननुभुक्तिर्दुःखसाक्षात्कृतिश्च भवति । सकलपदार्थानां तत्तभोक्तृभोग्यत्वेन तत्तददृष्ट निष्पन्नत्वान्नादृष्टाजन्यं किंचित् कार्यवैचित्र्यमस्ति । तस्माददृष्टस्यानुकूलप्रतिकूलपदार्थनिष्पादकप्रापकानुभावकप्रकारेण सुखदुःखलक्षणफलोत्पादने पर्यवसानम् । क्यों कि पत्थर भी खरपृथिवीकायिक जीवों के शरीर हैं अतः उन जीवों के अदृष्ट के अनुसार उन को स्तुति, पुजा आदि की प्राप्ति होती है । जीव के अदृष्ट से शरीर को स्तुतिपूजादि प्राप्त होना सम्भव नही यह आक्षेप भी उचित नही । अदृष्ट का फल भोग और भोग्यवर्ग इन दो साधनों से मिलता है। जीव को अपने आप में सुखदुःख आदि का साक्षात् अनुभव होता है यह भोग है । इंद्रिय और अन्तःकरण के अनुकूल या प्रतिकूल हो कर सुख या दुःख उत्पन्न करे वह भोग्यवर्ग है । पुण्य का उदय हो तो शुभ शरीर, इन्द्रिय और अन्तःकरण प्राप्त होते हैं, अनुकूल पदार्थ प्राप्त होते हैं तथा उन से सुख का अनुभव प्राप्त होता है। पाप का उदय हो तो अशुभ शरीर, इंद्रिय और अन्तःकरण प्राप्त होते हैं, प्रतिकूल पदार्थ प्राप्त होते हैं तथा उन से दुःख का अनुभव प्राप्त होता है । अतः अदृष्ट के फल के विना कोई कार्य उत्पन्न नही होता । १ मया जैनेन। २ स्यादिः भोग्यवर्गः भोग्यवर्गात् समुत्पन्नन्सुखदुःखसाक्षात्कारो भोगः। ३ शुभशरीरेन्द्रियान्तःकरणप्रतिकूलानाम् । ४ अशुभशरीरेन्द्रियान्तःकरण विपरीतानाम् । ५ भोक्तृ। ६ परिसमाप्तिः।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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