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________________ -९] चार्वाक दर्शन-विचारः पटवत् जीवस्य द्रव्यत्वमेव साधयतीति । द्वितीयपक्षे असिद्धो हेतुः। आवयोर्मते समवायाभावेन समवेतत्वानङ्गीकारात् । अङ्गीकारे वा परमत. प्रवेशः स्यात् । तृतीयपक्षेऽप्यसिद्धो हेत्वाभासः। जीवस्य देहात्मकत्वाभावे चेतनत्वादिहेतूनां प्रागेव निरूपणात् । तस्मान देहगुणो जीवः बाह्येन्द्रियाग्राह्यत्वात् अयावद्द्व्यभावित्वात् व्यतिरेके शरीररूपवत् । कायो वा न चैतन्यगुणवान् अचेतनत्वात् जडत्वात् जन्यत्वात् रूपादिमत्वात् अनित्यत्वात् सावयवत्वात् बाह्येन्द्रियग्राह्यत्वात् पटवदिति प्रतिपक्षसिद्धिः। एवं चसति 'देहात्मिका देहकार्या देहस्य च गुणो मतिः। मतत्रयमिहाश्रित्य जीवाभावोऽभिधीयते ॥' इत्येतन्नोपपनीपद्यत एव। [ ९. पुनर्भवसमर्थनम् । ] ___ यदप्यन्यत् प्रत्यतिष्ठिपत्-तस्मात् पृथिव्यप्तेजोवायुरिति चत्वार्येव तत्त्वानि, कायाकारपरिणतेऽभ्यस्तेभ्यश्चैतन्यं पिष्टोदकगुडाधातकी. होता है । अतः जीव शरीर से संयुक्त है ऐसा कहें तो जीव और शरीर ये दो द्रव्य मानने होंगे जो चार्वाकों को इष्ट नही है। जैनों के समान चार्वाक भी समवाय सम्बन्ध नही मानते अतः जीव शरीर से समवेत है यह कहना भी उनके लिये योग्य नही । जीव शरीरात्मक नही है यह पहले स्पष्ट किया है । इस प्रकार जीव शरीर का गुण नही है क्यों कि वह बाह्य इन्द्रियों से ज्ञात नही होता और सर्वदा शरीर के साथ नही रहता । ( जो गुग होता है वह सर्वदा द्रव्य के साथ रहता है - जैसे शरीर का रूप सर्वदा शरीर में रहता है। ) इस प्रकार जीव के विषय में चार्वाक आचार्यों की कल्पनाओं का निरास हुआ। ९. पुनर्भवका समर्थन-जीव का अनादि-अनन्त स्वरूप इस प्रकार स्पष्ट होने पर पृथिवी आदि भूतों के शरीर रूप में परिणत होने पर चैतन्य उत्पन्न होता है, गर्भ से पहले तथा मरण के बाद चैतन्य का अस्तित्व नही होता, पूर्व जन्म के अदृष्ट के फल की कल्पना निर्मूल है १ शरीरपटयोः संयुक्तत्वम्। २ जैनचकियोः। ३ न यावद्व्यभावित्वात् अयाबद्र्व्यभाषित्वात् गुणस्तु यावद्रव्यभावी भवति । ४ यस्तु देहगुणो भवति स बायेन्द्रियाग्राह्यो न भवति चेतनो न भवति यथा शरोरे रूपम् । ५ यथा पटः चैतन्यगुणो न चैतन्यमेव गुणो यस्य सः। ६ न संभवति ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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