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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः [४ भावात् कथं तेन जीवस्य कादाचित्कत्वं प्रसाध्यते । अथ' अनुमानस्य संवृत्या प्रामाण्य मिष्यत इति चेत् तथापि भवदुक्तानुमानानामनेकदोषदुष्टत्वान्न स्वेष्टसिद्धिः। तथा हि । जीवः कादाचित्कः द्रव्यत्वे सति प्रत्यक्षत्यात् पटवदित्यत्र प्रत्यक्षत्वं नाम बाह्येन्द्रियप्रत्यक्षत्वं स्वसंवेदनप्रत्यक्षत्वं मानसप्रत्यक्षत्वं वा। प्रथमपक्षे स्वरूपसिद्धो हेतुः, जीवस्य बाह्येन्द्रियप्रत्यक्षत्वाभावात् । द्वितीयपक्षे वाद्यसिद्धो हेत्वाभासः चार्वाकमते जीवस्य मतजन्यत्वेन पटादिवत्त स्वसंवेदनप्रत्यक्षाभावात, भावे वा पटादौ स्वसंवेदनप्रत्यक्षत्वाभावात् साधनविकलो दृष्टान्तः। तृतीयपक्षेऽपि साधनशन्यं निदर्शनं, पटादिदृष्टान्ते मानसप्रत्यक्षत्वाभावात् । द्रव्यत्वे सतीति विशेषणमपि वाद्यसिद्धं, जीवस्य स्वयं पृथग् द्रव्यत्वानङ्गीकारात् । अङ्गीकारे वा नित्यं चैतन्यम् अद्वयणुकातीन्द्रियद्रव्यत्वात् परमाणुवदिति नित्यत्वसिद्धर्विरद्धं विशेषणम् । भूभूधरादिहतोर्व्यभिचारश्च, तत्र द्रव्यत्वे सति प्रत्यक्षत्वहेतोः सद्भावेऽपि कादाचित्कत्वसाध्याभावात्। यदप्यन्यदनुयह युक्तिवाद निर्दोष भी नही है। जीव की अनित्यता बतलाने के लिये चार्वाकोंने जो अनुमान दिया है- जीव प्रत्यक्ष का विषय द्रव्य है अतः अनित्य है- वह योग्य नही क्यों कि बाह्य इन्द्रियों से जीव का प्रत्यक्ष ज्ञान नही होता। स्वसंवेदन से अथवा मानस प्रत्यक्ष से जीव का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है यह समाधान भी ठीक नही क्यों कि चार्वाक मत में जीव को पृथ्वी आदि भूतों से उत्पन्न माना है अतः वस्त्र इत्यादि के समान उस में भी स्वसंवेदन या मानस प्रत्यक्ष सम्भव नही। चार्वाक जीव को स्वतन्त्र द्रव्य नही मानते अतः जीव प्रत्यक्ष का विषय द्रव्य है यह युक्ति वे किस प्रकार दे सकते हैं। यदि जीव द्रव्य है तो परमाणु के समान ही अतीन्द्रिय होने से उस को भी नित्य मानना उचित है । दूसरा दोष यह है कि भूमि, पर्वत इत्यादि प्रत्यक्ष के विषय द्रव्य हैं फिर भी अनित्य नही हैं- सर्वदा विद्यमान हैं। अतः जो प्रत्यक्ष के विषय हैं वे द्रव्य अनित्य हैं यह कोई नियम नही है। दूसरा अनुमान यह दिया है कि जीव विशेष गुणों का आधार है अतः अनित्य है- यह भी योग्य नही। १ चार्वाकः। २ लोकव्यवहारेण। ३ भो चार्वाक। ४ जीवस्य स्वसंवेदनप्रत्यक्षत्वभावे। ५ द्वयणुकं च तत् उतींद्रिरद्रव्यं च। ६ पर्वतास्तु कादाचित्का न भवन्ति ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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