SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना १११ इस युग के ग्रन्थ मुख्यतः पुराने ग्रन्थों के विचारों का संरक्षण करने के उद्देश से लिखे गये हैं। भारत में मुस्लिम सत्ता के विस्तार से धार्मिकदार्शनिक साहित्य के निर्माण पर मूलगामी परिणाम हुआ। राजसभाओं में धार्मिक-तार्किक विवाद होना अब संभव नही रहा, साथही विद्वत्सभाओं का आयोजन भी कठिन हुआ। फलतः इस युग के लेखकों के विचारों में-तों में नवीनता का अभाव प्रतीत होता है। उन के ग्रन्थ विषय विशेष के प्रतिपादन की अपेक्षा लेखक के पाण्डित्य-प्रदर्शन का साधन थे। साथ ही इस युग में भक्तिवादी मतों का जो प्रभाव बढा उस के कारण तर्ककर्कश विचारों का अध्ययन बहुत कम हुआ। पूर्वयुग में गुजरात तथा कर्नाटक में जैन समाज का जो प्रभाव था वह इस युग में बहुत कम हो गया । फलतः साधारण लोगों के लिए रुचिकर कथा. उपदेशादि ग्रन्थों की रचना ही इस युग में अधिक हुई। इस तरह इन तीन युगों में तार्किक साहित्य का विभाजन है। यह विभाजन एक ओर सामाजिक पार्श्वभमि पर आधारित है। साथ ही साहित्य के अन्य अंगों की तुलना में तार्किक साहित्य का महत्त्व कैसा रहा यह भी उस से स्पष्ट होता है। - ९९. उपसंहार-अन्त में हमारे प्रस्तुत अध्ययन का सारांश हम संख्याओं के रूप में उपस्थित करते हैं । इस अध्ययन में ९४ लेखकों की १६८ रचनाओं का उल्लेख है। इन में ३० रचनाएं अनुपलब्ध हैं। उपलब्ध किन्तु अप्रकाशित रचनाओं की संख्या ५८ है। स्वतन्त्र रूप से लिखे हुए ग्रन्थ १२३ हैं तथा टीकात्मक ग्रन्थों की संख्या ४५ है । इन में १६ टीकाएं जैनेतर ग्रन्थों पर हैं। जो ८० ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं उन के ज्ञात प्रकाशनों को सम्मिलित संख्या १२३ है । उपर्युक्त विवरण में उन्हीं आचार्यों का उल्लेख है जिन के उपलब्ध या अनुपलब्ध ग्रन्थों का पता चलता है । शिलालेखों तथा अन्यान्य ग्रंथों के वर्णनों में इन के अतिरिक्त अन्य कई आचार्यों का महान तार्किक और वादी के रूप में उल्लेख मिलता है । मल्लिषणप्रशस्ति में उल्लिखित महेश्वर, विमलचन्द्र, परवा दिमल्ल, पद्मनाभ आदि पण्डित अथवा
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy