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________________ प्रस्तावना मल्लिकामकरन्द, कौमुदीमित्रानन्द, रोहिणीमृगांक, वनमाला, सुधाकलशकोश, कुमारविहारशतक, प्रासादद्वात्रिंशिका, युगादिदेवद्वात्रिंशिका, मुनिसुव्रतद्वात्रिंशिका, और कुछ अन्य स्तुतियां । ५२. रत्नप्रभ-ये वादी देव के शिष्य थे। गुरु के विशाल ग्रन्थ स्याद्वादरत्नाकर का अध्ययन सुलभ हो इस हेतु से इन्हों ने रत्नाकरावतारिका नामक ग्रन्थ लिखा। इस का विस्तार ५००० श्लोकों जितना है। इस पर राजशेखर को पंजिका तथा ज्ञानचन्द्र के टिप्पण ये दो विवरण लिखे गये हैं। इन का परिचय आगे दिया है। नेमिनाथचरित्र (सं. १२२३ = सन ११६७) तथा उपदेशमालावृत्ति ये रत्नप्रभ के अन्य ग्रंथ हैं। [प्रकाशन- प्रमाणनयतत्त्वालोक के साथ-यशोविजय ग्रन्थमाला, काशी, १९०४] ५३. देवभद्र (द्वितीय)- ये अजितसिंह के शिष्य थे। इन के शिष्य सिद्धसेन की ज्ञात तिथि (प्रवचनसारोद्धार टीका का रचनाकाल) सं. १२४८ = सन ११९२ है। अत: इन का समय बारहवीं सदी का उत्तरार्ध प्रतीत होता है । इन के दो ग्रन्थ ज्ञात हैं – श्रेयांसचरित्र तथा प्रमाणप्रकाश | इन में से दूसरा ग्रन्थ प्रमाण विषयक होगा ऐसा नाम से प्रतीत होता है। इस का प्रकाशन नही हुआ है। ५४. परमानन्द-ये वादी देव के प्रशिष्य तथा भद्रसूरि के शिष्य थे। इन्हों ने कई विषयों पर द्वात्रिंशिकाएं- ३२ श्लोकों के प्रकरण लिखे हैं । इन में वाद, ईशानुग्रह विचार, कलकाह निवृत्ति आदि प्रकरण त्कविषयक प्रतीत होते हैं। खंडन मंडन टिप्पण यह इन का ग्रन्थ ८५० श्लोकों जितने विस्तार का है। इस का भी प्रकाशन नही हुआ है। वादी देव के प्रशिष्य होने के कारण परमानन्द का समय बारहवी सदी का उत्तरार्ध प्रतीत होता है। ५५. महासेन-इन की दो कृतियां ज्ञात हैं - प्रमाण निर्णय तथा स्वरूपसंबोधन । प्रमाणनिर्णय अप्रकाशित है । स्वरूपसंबोधन २५ श्लोकों की छोटीसी रचना है तथा इस में आत्मा के स्वरूप का संक्षेप में
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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