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________________ ८४ विश्वतत्त्वप्रकाशः कृतियां इस प्रकार हैं - अंगुलसप्तति, वनस्पतिसप्तति, गाथाकोष, अनुशासनांकुश, उपदेशामृत, प्राभातिकस्तुति, मोक्षोपदेशपंचाशिका, रत्नत्रयकुलक, शोकहर उपदेश, सम्यक्त्वोत्पादविधि, सामान्यगुणोपदेश, हितोपदेश, कालशतक, मंडल विचार, द्वादशवर्ग। उन्हों ने निम्नलिखित अन्यों पर टिष्पण लिखे हैं -- सूक्ष्मार्थसार्धशतक, सूक्ष्मार्थविचारसार, भावश्यकसप्तति, कर्मप्रकृति, नैषधकाव्य, देवेन्द्रनरेन्द्रप्रकरण, उपदेशपद, ललितविस्तरा, धर्मबिंदु। ४५. श्रीचन्द्र-इन का दीक्षासमय का नाम पार्श्वदेव गणी था। भाचार्य होनेपर वे श्री चन्द्र नाम से सम्बोधित होने लगे। वे धनेश्वर के शिष्य थे। उन की ज्ञात तिथियां सन १११३ से ११७२ तक हैं। दिमाग के न्यायप्रवेश पर हरिभद्र ने जो टीका लिखी थी उस पर श्रीचन्द्र ने सं. ११६९ = सन १११३ में टिप्पण लिखे हैं। श्रीचन्द्र ने दूसरे जिन ग्रन्थों पर टीका या टिप्पन लिखे हैं उन के नाम इस प्रकार हैं - निशीथचूर्णि, श्रावकप्रतिक्रमण, नन्दीटीका, सुखबोधासामाचारी, जीतकल्पचूर्णि, निरयावली, चैत्यवंदन, सर्वसिद्धान्त, उपसर्गहरस्तोत्र । ४६. देवसूरि-- ये बृहद्गच्छ के मुनिचन्द्रसूरि के पट्टशिष्य थे। इन का जन्म सन १०८७ में, मुनिदीक्षा सन १०९६ में, आचार्यपदप्राप्ति सन १९१८ में तथा मृत्यु सन १९७० में हुई थी। गुजरात के राजा सिद्धराज तथा कुमारपाल की सभा में इन का अच्छा सम्मान था। दक्षिण के दिगम्बर विद्वान कुमुदचन्द्र से इन के वाद की कहानी प्रसिद्ध है। वाद में कुशलता के कारण वादी देव यह उन का नाम रूढ हुआ था। प्रमाणनयतत्त्वालोक तथा उस की स्वकृत स्याद्वादरत्नाकर नामक टीका यह देवसरि की प्रसिद्ध कृति है। इस का विस्तार ३६००० स्लोकों जितना था किन्तु वर्तमान समय में इस का २०००० श्लोकों जितना भाग उपलब्ध हुआ है। माणिक्यनन्दि के परीक्षामुख के छह १) प्रकाशन की सूचना हरिभद्र के परिचय में दी है।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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