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________________ जैन तर्क भाषा चोभाभ्यामपि भवतोऽपायस्य निश्चयैकरूपेण भेदाभावात्, अन्यथा स्मृतेराधिक्येन मतेः पञ्चभेदत्वप्रसंगात् । अथ नास्त्येव भवदभिमता धारणेति भेदचतुष्टया (य) व्याघातः; तथाहि उपयोगोपरमे का नाम धारणा ? उपयोगसातत्यलक्षणा अविच्युतिश्चापायान्नातिरिच्यते । या च घटाद्युपयोगोपरमे संख्येयमसंख्येयं वा कालं वासनाऽभ्युपगम्यते, या च 'तदेव' इतिलक्षणा स्मृतिः सा मत्यंशरूपा धारणा न भवति मत्युपयोगस्य प्रागेवोपरतत्वात्, कालान्तरे जायमानोपयोगेऽप्यन्वयमुख्यां धारणायां स्मृत्यन्तर्भावादिति चेत्; न; अपायप्रवृत्त्यनन्तरं क्वचिदन्तर्मुहूर्तं यावदपायधाराप्रवृत्तिदर्शनात् अविच्युतेः, पूर्वापरदर्शनानुसन्धानस्य 'तदेवेदम्' इति स्मृत्याख्यस्य प्राच्यापायपरिणामस्य तदाधायक संस्कारलक्षणाया वासनायाश्च अपायाभ्यधिकत्वात् । १६ नवविच्युतिस्मृतिलक्षणो ज्ञानभेदौ गृहीतग्राहित्वान्न प्रमाणम् ; संस्कारश्च किं स्मृतिज्ञानावरणक्षयोपशमो वा तज्ज्ञानजननशक्तिर्वा, तद्वस्तुविकल्पों है । किन्तु सभी जगह उसका स्वरूप अर्थात् निश्चय एक ही है, अतएव उसमें भेद नहीं किया जा सकता । ऐसा न माना जाय और अपाय एवं धारणाकी व्युत्पत्ति-परक व्याख्या मानी जाय तो स्मृतिज्ञानका समावेश उसमें नहीं होगा । इस स्थिति में मतिज्ञानके पाँच भेद मानने पडेंगे । शंका- आपकी मानी हुई धारणा अलग नहीं है, अतएव मतिज्ञानके चार भेदोंमें कोई बाधा नहीं आती । वह इस प्रकार उपयोगकी समाप्तिके बाद फिर धारणा कैसी ? उपयोगका चालू रहनारूप अविच्युति अपायरूप है । घटादिका उपयोग समाप्त होनेपर भी संख्यात या असंख्यात काल तक रहनेवाली वासना और 'वह' इस आकारसे उत्पन्न होनेवाली स्मृति भी मतिज्ञानका अंशरूप धारणा नहीं कहला सकती, क्योंकि इनसे पहले ही मतिज्ञानका उपयोग-व्यापार- समाप्त हो चुकता है । कालान्तरमें जो उपयोग उत्पन्न होता है, वह अन्वय-मुखी धारणा अन्तर्गत हो जाता है । समाधान- अपायज्ञानकी प्रवृतिके पश्चात् कहीं-कहीं अन्तर्मुहूर्त तक अपायकी धारा जारी रहती देखी जाती है, अतएव वह धारा अपायसे अलग है । पूर्वकालके और वर्तमान काल दर्शनका जोड रूप 'यह वही है' इस प्रकार स्मरण - प्रत्यभिज्ञान - नामसे प्रसिद्ध और पूर्वकालीन अपायका फलरूप ज्ञान भी अपायसे अलग है और उस ज्ञानकी धारणा करनेवाली संस्कारज्ञानस्वरूप बासना भी अपायसे अलग है । शंका- अविच्युति और स्मृति- ये दोनों ज्ञान गृहीतग्राही ( पहले जाने हुए पदार्थको ही जाननेवाले ) हैं अतएव प्रमाण नहीं रह गया संस्कार - वासना, सो वह संस्कार क्या है ? स्मृतिज्ञानावरणका क्षयोपक्षम, या स्मृतिज्ञानको उत्पन्न करनेकी शक्ति अथवा उस वस्तुका
SR No.022456
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherTiloakratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
Publication Year1964
Total Pages110
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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