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________________ जैन तर्क भाषा ( प्रत्यक्षं लक्षयित्वा सांव्यवहारिक पारमार्थिकत्वाभ्यां तद्विभजनम् । ) १ तद् द्विभेदम् - प्रत्यक्षम्, परोक्षं च । अक्षम् इन्द्रियं प्रतिगतम् - कार्यत्वेनाश्रितं प्रत्यक्षम्, अथवाऽश्नुते ज्ञानात्मना सर्वार्थान् व्याप्नोतीत्यौणादिकनिपातनात् अक्षो जीवः, तं प्रतिगतं प्रत्यक्षम् । न चैवमवध्यादौ मत्यादौ च प्रत्यक्षव्यपदेशो न स्यादिति वाच्यम्; यतो व्युत्पत्तिनिमित्तमेवैतत् प्रवृत्तिनिमित्तं तु एकार्थसमवायिनाऽनेनोपलक्षितं स्पष्टतावत्त्वमिति । स्पष्टता चानुमानादिभ्योऽतिरेकेण विशेषप्रकाशनमित्यदोषः । अक्षेभ्योऽक्षाद्वा परतो वर्तत इति परोक्षम्, अस्पष्टं ज्ञानमित्यर्थः । , २. प्रत्यक्षं द्विविधम्- सांव्यवहारिकम्, पारमार्थिकं चेति । समीचीनो बाधारहितो व्यवहारः प्रवृत्तिनिवृत्तिलोकाभिलापलक्षणः संव्यवहारः, तत्प्रयोजनकं सांव्यवहारिकम् - अपारमार्थिकमित्यर्थः, यथा अस्मदादिप्रत्यक्षम् । तद्धीन्द्रियानिन्द्रियव्यवहितात्मव्यापार सम्पाद्यत्वात्परमार्थतः परोक्षमेव, धूमात् अग्निज्ञानवद् व्यवधानाविशेषात् । किञ्च, असिद्धानैकान्तिकविरुद्धानुमाना भासवत् संशयविपर्ययानध्यवसायसम्भवात्, सदनुमानवत् संकेतस्मरणादिपूर्वक निश्चयसम्भवाच्च परमार्थतः परोक्षमेवैतत् । प्रत्यक्ष प्रमाणका लक्षण १ प्रमाणके दो भेद हैं- ( १ ) प्रत्यक्ष और ( २ ) परोक्ष | अक्ष के अर्थ हैं - इन्द्रिय और आत्मा । अतएव जो ज्ञान अक्षपर आश्रित हो, इन्द्रियके द्वारा या आत्माके द्वारा हो, वह प्रत्यक्ष कहलाता है । शंका- यदि इन्द्रियाश्रित ज्ञानको प्रत्यक्ष माना जाय तो अवधिज्ञान आदि प्रत्यक्ष नहीं कहला सकेंगे, क्योंकि वे इन्द्रियाश्रित नहीं हैं । और यदि आत्माश्रित ज्ञानको प्रत्यक्ष माना जाय तो मतिज्ञान प्रत्यक्ष नहीं ठहरेगा; क्योंकि वह आत्माश्रित नहीं, इन्द्रियाश्रित है । समाधान- 'जो ज्ञान अक्षपर आश्रित हो वह प्रत्यक्ष है, यह कथन सिर्फ व्युत्पत्तिनिमित्तक है । प्रत्यक्षका प्रवृत्तिनिमित्त ' स्पष्टता ' है । अर्थात् जिस ज्ञानमें स्पष्टता हो वही वास्तव में प्रत्यक्ष है। अनुमान आदिमें प्रकाशित होनेवाले विशेषोंकी अपेक्षा अधिक विशेषोंका प्रकाशन: होना स्पष्टता कहलाता है । अक्षोंसे या अक्ष पर जो ज्ञान है वह परोक्ष है. अर्थात् जो ज्ञान अस्पष्ट हो उसे परोक्ष कहते हैं । प्रत्यक्षके भेद २ प्रत्यक्ष दो प्रकारका है - ( १ ) सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष और ( २ ) पारमार्थिक प्रत्यक्ष । बाधा रहित प्रवृत्ति - निवृत्ति और लोगोंका बोलचालरूप व्यवहार संव्यवहार कहलाता है। इस संव्यवहार के लिए जो प्रत्यक्ष माना जाय वह सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष है । यह अपारमार्थिक प्रत्यक्ष है ।
SR No.022456
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherTiloakratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
Publication Year1964
Total Pages110
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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