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________________ सरलार्थऋजुसूत्रादि चारों नयों की मात्र भाव निक्षेप की मान्यता ऋजुसूत्रनय एवं इसके बाद शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूत ये तीन नय भी स्थापना आदि चार निक्षेपों में से मात्र भाव निक्षेप को ही स्वीकार करते हैं ।।१३।। (१४) शब्दनयस्वरूपमाह . [ उपजातिवृत्तम् ] न शब्दभेदैर्भवतीह भिन्नता, कुम्भे घटे वा कलशेऽसरूपे । अतश्च शब्दो नय ऐक्यमेव, पर्यायभिन्नेष्वपि मन्यतेऽसौ ॥१४॥ सरलार्थ शब्दनय का स्वरूप पर्यायशब्दों के भेद से समानार्थक शब्दों में भेद नहीं माना जाता है । अतः शब्दनय के द्वारा भिन्न-भिन्न पर्याय शब्द-समूह में अर्थात् घट, कलश, कुम्भ आदि में ऐक्य माना जाता है । समानार्थक अनेक शब्दों में भी ऐकय इसके द्वारा मानना आवश्यक है ।।१४।।... नयविमर्शद्वात्रिशिका-७७
SR No.022450
Book TitleNayvimarsh Dwatrinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1983
Total Pages110
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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