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________________ सम्राट् हैं ।। २५।। ( ३ ) उन्हीं के प्रधान पट्टधर श्राचार्य श्रीदक्षसूरीश्वरजी म. सा. धर्मप्रभावक हैं, श्रेष्ठ हैं, शास्त्र विशारद हैं और दक्ष हैं ।।२६।। ( ४ ) उन्हीं के पट्टधर ( मैं ) सुशीलसूरि अपनी जिज्ञासावृत्ति एवं अध्ययन - स्वाध्याय से जिनोत्तमविजयादि शिष्यों के नय एवं तर्कशास्त्र के अध्ययनार्थ ॥२७॥ ' ( ५ ) विक्रम संवत् २०३३ माघ शुक्ला त्रयोदशी ( महा शुद - १३ ) को बुधवार के दिन मेदपाट - मेवाड़ में ||२८|| ( ६ ) करेड़ा नाम के उत्तम तीर्थ में अंजनशलाका आदि विधि के साथ में प्रभु श्रीपार्श्वनाथ ग्रादि अनेक जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा महोत्सव समयावधि में महान् उत्सव एवं उल्लास के समय ॥२६॥ ( ७ ) मैंने संस्कृत गद्य-पद्यान्वय से युक्त सबको तत्त्वज्ञान देने वाले इस नयविमर्श नामक ग्रन्थ की रचना की है । नयविमर्शद्वात्रिशिका - ६६
SR No.022450
Book TitleNayvimarsh Dwatrinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1983
Total Pages110
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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