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________________ हैं; नाम, स्थापना और द्रव्य निक्षेप को नहीं । इस सम्बन्ध में कहा भी है कि नामाइतियं दवट्टियस्स भावो य पज्जवरणयस्स । संगह-ववहारा पढमगस्स सेसा य इयरस्स ।। [विशेषा० ७५] नाम, स्थापना तथा द्रव्य ये तीनों द्रव्यार्थिक नय के विषय हैं, पर्यायाथिक नय का विषय एक भाव ही है । ___ संग्रह, व्यवहार और नैगम ये तीन द्रव्याथिक नय हैं तथा ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ व एवंभूत ये चार पर्यायाथिक नय हैं ।।१३।। [ १४ ] शब्दनयस्वरूपम् - [ उपजातिवृत्तम् ] न शब्दभेदेभंवतीह भिन्नता, कुम्भे घटे वा कलशेऽसरूपे। अतश्च शब्दो नय ऐक्यमेव, पर्यायभिन्नेष्वपि मन्यतेऽसौ ॥१४॥ अन्वय : ___'इह कुम्भे घटे वा कलशे शब्दभेदैः भिन्नता न भवति । पर्यायभिन्नेषु अपि शब्दो नय (प्रसौ) अतः ऐक्य एव मन्यते' इत्यन्वयः । नयविमर्शद्वात्रिंशिका -३६
SR No.022450
Book TitleNayvimarsh Dwatrinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1983
Total Pages110
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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