SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किञ्चित् प्रास्ताविक सर्वदेवाचार्य प्रणीत. प्रमाणमञ्जरी नामक प्रस्तुत ग्रन्थ वैशेषिक दर्शनका एक ' प्रमाणभूत और प्राचीन प्रकरण ग्रन्थ है। इस ग्रन्थका मूलमात्र ही अभी तक प्रकाशमें आया है; लेकिन व्याख्यादिके साथ यह कहींसे प्रकाशित नहीं हुआ । आधुनिक विद्वानोंको तो इस ग्रन्थका परिचय भी शायद नहीं है। राजस्थान, मध्यभारत एवं गुजरातके प्राचीन पुस्तक भण्डारोंमें इस ग्रन्थकी अनेक हस्तलिखित प्रतियां प्राप्त होती हैं और इस पर रची हुई भिन्न भिन्न विद्वानोंकी व्याख्याएँ आदि भी यत्रतत्र उपलब्ध होती हैं। इससे ज्ञात होता है कि प्राचीन कालमें, राजस्थानमें इस ग्रन्थके पठन-पाठन और अध्ययन - अध्यापन आदिका यथेष्ट प्रचार रहा है। . कोई १२ वर्ष पहले बंबईके निर्णयसागर प्रेसने इस ग्रन्थका मूलमात्र छाप कर प्रकट किया था, जिसे देख कर इसकी व्याख्या वगैरहके विषयमें कुछ जानकारी प्राप्त करनेकी हमें इच्छा हुई । सन् १९४३ के प्रारंभमें जेसलमेरके ज्ञान भण्डारोंका निरीक्षण करनेका हमें प्रसङ्ग प्राप्त हुआ उस समय वहांके एक ज्ञान भण्डारमें बलभद्रमिश्रकी' व्याख्यावाली इसकी . १ इन बलभद्रमिश्रने केशव मिश्रकी तर्कभाषापरभी तर्कभाषा प्रकाशिका नामक संक्षिप्त परंतु सुन्दर व्याख्या बनाई है जिसकी एक प्रति पूनाके भाण्डारकररीसर्च इन्स्टीट्यूटमें संरक्षित, राजकीय ग्रन्थ संग्रहमें, सुरक्षित है । इस व्याख्याके आद्यन्त पद्य इस प्रकार हैं। आदि-विष्णुदासतनूजेन बलभद्रेण तन्यते । ध्यात्वा विष्णुपदाम्भोजं तर्कभाषाप्रकाशिका । अन्त-विष्णुदासतनूजेन माध्वीपुत्रेण यत्नतः । अकारि बलभद्रेण तर्कभाषाप्रकाशिका ॥ इन बलभद्र मिश्रका समयनिर्णायक कोई विशिष्ट आधार अभी तक ज्ञात नहीं हुआ है। परंतु भावनगरके जैन ज्ञान भण्डारमें प्रस्तुत प्रमाणमञ्जरी व्याख्याकी एक प्रति हमारे देखनेमें आई है उसका लिपिकाल आदि इस प्रकार लिखा हुआ है। संवत् १६६७ वर्षे भाद्वासुदि १४ दिने वार सोमे प्रती पूरी कीधी । मोढ ज्ञातीय पंड्या भवान सुत पंड्या मेघजी। इस पंक्तिसे इतना तो निश्चित ज्ञात हो रहा है कि वि. सं. १६६७ के पहले ही बलभद्र मिश्र कभी हो गये हैं। इसके पूर्वकी समयमर्यादा का विचार करने पर, यह भी निश्चित रूपसे कहा जा सकता है कि तर्कभाषाके कर्ता पं. केशवमिश्रके बाद ही बलभद्र मिश्र हुए हैं। केशवमिश्रका समय, विद्वानोंने प्रायः ईखी १३०० के कुछ पूर्ववर्ती अनुमानित किया है । क्यों कि तर्कभाषाके पहले टीकाकर चिन्नभट्ट हैं जो ईखीकी १४ वीं शताब्दीके पूर्वार्द्ध में हुए हैं। दूसरी ओर केशवमिश्रने अपने ग्रन्थमें प्रसिद्ध महानैयायिक गंगेशके विचारोंका अनुसरण किया है, अतः गंगेशके बाद ही केशवमिश्रका होना सिद्ध होता है । गंगेशोपाध्यायका समय विद्वानोंने ई. स. ११५०१२०० के लगभग अनुमानित किया है; अतः इस तरह ई. स. १२००-१३०० के बीचमें केशवमिश्रका होना मानना संगत लगना है। हमारा अनुमान है कि प्रमाणमञ्जरी और तर्कभाषाके टीकाकार ये बलभद्रमिश्र वे ही हैं जो तर्कभाषाकी एक दूसरी व्याख्या करनेवाले गोवर्धन मिश्रके पिता थे। गोवर्द्धन मिश्रने अपनी तर्कभाषाप्रकाश नामक व्याख्या में अपना परिचय इस प्रकार दिया है
SR No.022449
Book TitlePraman Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPattambhiram Shastri
PublisherRajasthan Puratattava Mandir
Publication Year1953
Total Pages120
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy