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________________ भाषा-अर्य। भावार्थ-दुःखका कारण मौजूद है इसलिए वह दुःखको ही जनावेगा। विरुद्धपूर्वचरोपलब्धिका उदाहरण । नोदेष्यति मुहूर्तान्ते शकटं रेवत्युदयात् ॥७॥ भाषार्थ--एकमुहूतेके बाद रोहणीका उदय नहीं होगा क्योंकि रोहणी ( शकट ) के उदयसे विरुद्ध-अश्विनीनक्षत्र-के पूर्वचर ( पहले उदय होनेवाले ) रेवतीका उदय होरहा है। भावार्थ-रेवतीका उदय अश्विनीके उदयका पूर्वचर है इस लिए अश्विनीको ही जनावेगा । कि उदय होगी। विरुद्धोत्तरचरोपलब्धिका उदाहरण । . नोद्गाद्भरणि मुहूर्तात्पूर्व पुष्योदयात् ॥ १६ ॥ . भाषार्थ-एकमुहूर्तकाल पहले भरणिका उदय नहीं हुआ क्योंकि भरणिके उदयसे विरुद्ध-पुनर्वसु-के उत्तरचर (पीछे उदय होनेवाले ) पुष्यनक्षत्रका उदय होरहा है। भावार्थ--पुष्यनक्षत्रका उदय पुनर्वसुका उत्तरचर है इस लिए उसीके उदयको जनावेगा । कि होगया है। विरुद्धसहचरोपलब्धिका उदाहरण । नास्त्यत्र भित्तौ परभागाभावोऽर्वाग्भागदर्शनात् ॥ ७७॥ भाषार्थ--इस दीवालमें उसतरफके भागका प्रभाव नहीं है क्योंकि उसतरफके भागके अभावसे विरुद्ध-उसतरफेक भागके सद्भावका साथी, इसतरफका भाग दीखरहा है। .. .
SR No.022447
Book TitleParikshamukh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Jain
PublisherGhanshyamdas Jain
Publication Year
Total Pages104
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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