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________________ जैनमत-विचार। जायगा । और यदि सर्वज्ञ के निषेध करने से पूर्व तीन लोक का तथा सर्वन का ज्ञान न माना जायगा, तो सर्वज्ञ को विना जाने निषेध ही किसका होगा, तथा तीनलोक को विना जाने सर्वत्र का सर्वत्र निषेध कैसे होगा। (मीमांसक) सर्वज्ञ के निषेध करने में तीन लोक के ज्ञान की, व सर्वज्ञ विषयक ज्ञान की, यदि आवश्यकता है । और हमको तीन लोक का, व सर्वज्ञ का ज्ञान नहीं भी है, तो न सही, जैन लोगों को जो सर्वन का व तीन लोक का ज्ञान है उसी ज्ञान से हम सर्वज्ञ का निषेध कर सकते हैं। __ (जैन) तीन लोक व सर्वज्ञ विषयक हमारे ज्ञान को आप प्रमाण मानते हो या अप्रमाण ? यदि प्रमाण मानते हो तो उसके द्वारा जाने हुए सर्वज्ञ का आप निषेध नहीं कर सकते, और यदि अप्रमाण मानते हो, तो फिर अप्रमाण ज्ञान के ऊपर विश्वास करके सर्वज्ञ का निषेध करना कार्यकारी नहीं हो सकता। ... ___ (मीमांसक) जैनियों का माना हुआ यह नियम-कि प्रत्येक पदार्थ का अभाव सिद्ध करने से पूर्व उस पदार्थ का ज्ञान होना आवश्यक है-उनके सिद्धान्त से ही खंडित होता है क्योंकि जैन लोग सर्वथा नित्यत्व, सर्वथा अनि त्यत्व, आदि एक २धर्म वाले पदार्थों को मिथ्या कह कर
SR No.022445
Book TitleAaptpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmravsinh Jain
PublisherUmravsinh Jain
Publication Year
Total Pages82
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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