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________________ वैशेषिकमत-विचार। मुनीश्वरों से वंदनीक अहंत देव ही वास्तव में पूज्य सिद्ध होते हैं। इस प्रकार जब नैयायिकों के माने हुए ईश्वर में, सांख्य के माने हुए कपिल में, वौद्धों के माने हुए सुगत में, व वेदान्तियों के माने हुए ब्रह्म में, सर्वज्ञपना सिद्ध नहीं हुआ, तब ये सब ईश्वर कपिल आदिक मोक्षमार्ग का उपदेश भी नहीं दे सकते; क्योंकि मोक्ष का उपदेश वहीं दे सकता है, जिस पुरुष में मिथ्या उपदेश के कारण, अज्ञान व कषाय, न हों अर्थात् जो सर्वज्ञ और वीतराग हो, ईश्वर कपिल आदिक में प्रमाण से सर्वज्ञपना व वीतरागपना सिद्ध नहीं होता, इसलिये वे मोक्ष का उपदेश भी नहीं दे सकते, और जो सर्वज्ञ व वीतरागी है वह मुनीश्वरों से भी वंदनीक जैनियों का माना हुआ अहंत देव ही वास्तव में मोक्षमार्ग का उपदेशक ठहरता है, क्योंकि मोक्षमार्ग का सच्चा उपदेश विना सर्वज्ञपने व वीतरागपने के नहीं हो सकता और अर्हतदेव में सर्वज्ञपना व वीतरागपना अकाट्य प्रमाण से सिद्ध होता है। इन दोनों गुणों में सर्वज्ञपना (तीनों काल के समस्त पदार्थों को प्रत्यक्ष जानना) तो इस प्रकार सिद्ध होता है कि- . ततोऽन्तरिततत्वानि प्रत्यक्षाण्यहतोऽञ्जसा । प्रमेयत्वाद्यथाऽस्मादृप्रत्यक्षार्थाः सुनिश्चिताः ॥८॥
SR No.022445
Book TitleAaptpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmravsinh Jain
PublisherUmravsinh Jain
Publication Year
Total Pages82
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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