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________________ - आस-परीक्षा। और जब अन्य धर्मों की तरह जानना भी ईश्वर का निज स्वरूप सिद्ध हो चुका तब ईश्वर को ज्ञान के समवाय से ज्ञाता मानना भी निरर्थक ही है। इसके अतिरिक्त यह बात और भी है कि जब आपने स्व और पर को जानने वाले ज्ञान का ईश्वर के साथ तादात्म्य सम्बंध मान लिया, तब आपके माने हुए ईश्वर, और हमारे माने हुए जिनेश्वर में कोई भी भेद नहीं रहता। अर्थात् जब जिनेन्द्र देव के समस्त गुण आपने ईश्वर में भी मान लिये तब हमारा वही पहिले का कहना सिद्ध होगया किस एव मोक्षमार्गस्य प्रणेता व्यवतिष्ठते । सदेहः सर्वविन्नष्टमोहो धर्मविशेषभाक् ॥ ७५ ॥ ज्ञानादन्यस्तु निर्देहः सदेहो वा न युज्यते । शिवः कर्तोपदेशस्य सोऽभेत्ता कर्मभूभृताम् ॥७६॥ ___ वीतराग, सर्वज्ञ, शरीरधारी, व तीर्थकरत्व नामक पुण्यातिशय वाले अहंत देव ही वास्तव में मोक्ष का उपाय बता सकते हैं या उपदेश दे सकते हैं। और ज्ञान से सर्वथा भिन्न, तथा कर्मों का नाश न करने वाले शिव, ईश्वर, या महेश्वर आदिक चाहे शरीर रहित हों, या शरीर सहित, कदापि मोक्ष मार्ग का उपदेश नहीं दे सकते।
SR No.022445
Book TitleAaptpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmravsinh Jain
PublisherUmravsinh Jain
Publication Year
Total Pages82
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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