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________________ आप्त- परीक्षा । ज्ञानस्याऽपीश्वरादन्यद्रव्यवृत्तित्वहानितः । इति येऽपि समादध्युस्तांश्च पर्यनुयुंज्महे ॥ ४५ ॥ विभुद्रव्यविशेषाणामन्याश्रयविवेकतः । युतसिद्धिः कथं नु स्यादेकद्रव्यगुणादिषु ॥ ४६ ॥ समवायः प्रसज्येतायुतसिद्धौ परस्परं । तेषां तद्वितयासत्ये स्याद्व्याघातो दुरुत्तरः ॥४७॥ ( वैशेषिक ) यद्यपि अयुतसिद्धि का पूर्वोक्त लक्षण यहां पर नहीं घटता, तथापि युतसिद्धि का लक्षण जो " पृथक् २ आधार में रहना " है वह भी महेश्वर वज्ञान में नहीं घटता, क्योंकि ईश्वर के व्यापक होने से उसका तो कोई आधार है ही नहीं रहा ज्ञान, वह भी ईश्वर को छोड़ कर और किसी आधार में नहीं रहता, इस लिये जब महेश्वर व ज्ञानकी युतसिद्धि नहीं बनती, तब इन दोनों की अयुतसिद्धि ही मान ली जाय तो क्या हानि है । (जैन) यदि आप महेश्वर व ज्ञान का पृथक् २ आधार न सिद्ध होने से ही इन दोनों की अयुतसिद्धि मानोगे, तो हम कहते हैं कि, आकाश और आत्मा का भी तो व्यापक होने से पृथक २ आधार सिद्ध नहीं होता, उनकी भी अयुतसिद्धि क्यों नहीं मान लेते, और अयुत सिद्धि होने से आकाश व आत्मा का भी समवाय २४
SR No.022445
Book TitleAaptpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmravsinh Jain
PublisherUmravsinh Jain
Publication Year
Total Pages82
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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