SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीजिनाय नमः । श्रीविद्यानन्दिस्वामि-विरचित मूल आप्त-परीक्षा का भावानुवाद प्रबुद्धाशेषतत्वार्थबोधदीधितिमालिक नमः श्रीजिनचन्द्राय, मोहध्वान्तप्रमदिन ॥ १ ॥ __ मैं विद्यानन्दि नामक आचार्य, उस चन्द्रमा के समान जिनेन्द्र देव को नमस्कार करता हूं, जिसने मोहरूपी अन्धकार को नष्ट कर दिया है, और अपने ज्ञानरूपी मूर्य से समस्त पदार्थों को जान लिया है। श्रेयोमार्गस्य संसिद्धिः, प्रसादात् परमेष्ठिनः । इत्याहुस्तद्गुणस्तोत्रं, शास्त्रादौ मुनिपुंगवाः ॥ २ ॥ ___ प्रसन्न मनपूर्वक इष्टदेव की उपासना करने से मोक्ष का उपाय मालूम होता है इस कारण बड़े २ आचार्य भी शास्त्र के प्रारम्भ में परमेष्ठी के गुणों का स्तवन किया करते हैं । अतः हम भी इस आप्त-परीक्षा ग्रन्थ के प्रारम्भ में इष्टदेव को नमस्कार करते हैं।
SR No.022445
Book TitleAaptpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmravsinh Jain
PublisherUmravsinh Jain
Publication Year
Total Pages82
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy