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________________ प्रस्तावना परम पूज्य तार्किक शिरोमणि उपाध्याय श्रीमद् यशोविजय महाराज की प्रतिभा के पञ्च पुष्प महनीय श्री जैन संघ की सेवामें समर्पित करते हुए प्राज आनन्द का अनुभव हो रहा है । प्रस्तुत पुस्तक में अद्यावधि अप्रकाशित ४ ग्रन्थ और अपूर्ण प्रकाशित १ ग्रन्थ का समावेश किया गया है। ग्रन्थकार परिचय . इस वादसंग्रह के प्रणेता हैं पूज्य उपा० श्री यशोविजयजी महाराज जिनका जन्म उत्तर गुजरात में कनोडु गांव में और स्वर्गवास वि० स १७४४ में दर्भावती (डभोई) गाँव में हुआ था। बालवय में दीक्षा ग्रहण कर इस महर्षि ने जैन ग्रन्थों का तलस्पर्शी अध्ययन किया और उनको अप्रतिम प्रतिभा देखकर परसमय के अध्ययन के लिये उनके गुरुदेव श्रीनय विजयजी म. उनको काशी में ले गये। वहाँन्याय-वैशिषिक इत्यादि दर्शनों के सिद्धान्त का तलस्पर्शी अध्ययन किया और निराश बने हुए वादीओं की सभा में दर्जय वादी को पराजय देकर जन शासन की विजय पताका को गगन में लहराया। जीवन के अन्तिम श्वास तक बाल और विद्वद्गण भोग्य अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया। अपनी प्रतिभा और शक्ति का सदुपयोग करके जैन शासन की कोत्ति में चार चांद लगाये। १-कूपदृष्टान्तविशदीकरण (पृष्ठ-१ से २८) . प्रतिपरिचयादिः हालाँकि यह प्रकरण पहले जैन ग्रन्य प्रकाशक सभा-राजनगर द्वारा प्रकाशित हुआ था लेकिन वह अपूर्ण था-इसका कारण यह
SR No.022440
Book TitleVadsangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Upadhyay
PublisherBharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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