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________________ ८३ शिष्यके आशयके अनुसार होती है" । इस प्रकार परार्थानुमान, प्रतिज्ञादिरूप दूसरेके उपदेशसे उत्पन्न होता है । यही कहा है कि “परोपदेश सुनकर जो श्रोताको साधनसे साध्यका ज्ञान होता है उसको परार्थानुमान कहते हैं ।" फलितार्थ यह हुआ कि स्वार्थ और परार्थ, दोनों ही प्रकारका अनुमान उस हेतुसे उत्पन्न होता है कि जिसका साध्यके विना न होना निश्चित है। ___ इत्थमन्यथानुपपत्त्येकलक्षणो हेतुरनुमितिप्रयोजक इति प्रथितेऽप्यार्हतमते तदेतदवितान्येऽन्यथाप्याहुः।तत्र तावत्ताथागताः “पक्षधर्मत्वादित्रितयलक्षणाल्लिङ्गादनुमानोत्थानम्" इति वर्णयन्ति । तथा हि "पक्षधर्मत्वं सपक्षे सत्त्वं विपक्षाद्यावृत्तिरिति हेतोस्त्रीणि रूपाणि । तत्र साध्यधर्मविशिष्टो धर्मी पक्षः, यथा धूमध्वजानुमाने पर्वतः। तस्मिन् व्याप्य वर्तमानत्वं हेतोः पक्षधर्मत्वम् । साध्यसजातीयधर्मा धर्मी सपक्षः । यथा तत्रैव महानसः । तस्मिन्सर्वत्रैकदेशे वा वर्तमानत्वं हेतोः सपक्षे सत्त्वम् । साध्यविरुद्धधर्मा धर्मी विपक्षः । यथा तत्रैव महाहृदः, तस्मात्सर्वसाद्वयावृत्तत्वं हेतोर्विपक्षाब्यावृत्तिः । ता. नीमानि त्रीणि रूपाणि मिलितानि हेतोर्लक्षणम् । अन्यतमाभावे हेतोराभासत्वं स्यात्" इति । "जिसका लक्षण केवल अन्यथानुपपत्ति ही है ऐसा हेतु अनु. मानका प्रयोजक है" इस प्रकार जैनसिद्धांत युक्तिसंगत प्रसिद्ध होनेपर भी, बहुतसे लोग इस अनुमानका स्वरूप इससे विपरीत ही कहते हैं। उनमेंसे बौद्ध इस प्रकार कहते हैं कि “जिसमें पक्षधर्मत्वादिक तीन स्वभाव पाये जाते हों, ऐसे हेतुसे अनुमानकी उत्पत्ति होती है। अर्थात् पक्षधर्मत्व, सपक्षे सत्व, विपक्षाद्यावृत्ति इस प्रकार हेतुके तीन रूप हैं । उनमेसे जो धर्मी साध्यरूप
SR No.022438
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1913
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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