SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६३ होनेवाले, साध्यसाधनसम्बन्धी ज्ञानको तर्क कहते हैं। यह प्रत्यक्षादिकसे भिन्न है । क्योंकि, प्रत्यक्ष, निकटके स्थानमें ही धूम और अग्निके सम्बन्धका प्रकाश कर सकता है इसलिये व्याप्तिका प्रकाश नहीं कर सकता । क्योंकि, व्याप्ति, सम्पूर्ण देशकालवर्ती साध्य और साधनके उपसंहारको विषय करती है। ननु यद्यपि प्रत्यक्षमात्रं व्याप्तिविषयीकरणे शक्तं न भवति तथापि विशिष्टं प्रत्यक्षं तत्र शक्तमेव । तथा हि । महानसादौ तावत्प्रथमं धूमायोर्दर्शनमेकं प्रत्यक्षम् । तदनन्तरं भूयो भूयप्रत्यक्षाणि प्रवर्तन्ते । तानि च प्रत्यक्षाणि न सर्वाणि व्याप्तिविषयीकरणे समर्थानि अपि तु पूर्वपूर्वानुभूतधूमाग्निस्मरणतत्सजातीयत्वानुसन्धानरूपप्रत्यभिज्ञानसहकृतः कोपि प्रत्यक्षविशेषो व्याप्तिं गृह्णाति । तथा च, स्मरणप्रत्यभिज्ञान सहकृते प्रत्यक्षविशेषे व्याप्तिविषयीकरणसमर्थे किं तर्काख्येन पृथक्प्रमाणेनेति केचित् तेपि न्यायमार्गानभिज्ञाः । ( शङ्का ) यद्यपि केवल प्रत्यक्ष व्याप्तिको विषय नहीं कर सकता, तथापि विशेष प्रत्यक्ष उसको विषय कर सकता है । अर्थात् भोजनशालामें धूम और अग्निके देखनेसे एक बार प्रत्यक्ष हुआ। इसी प्रकार और भी अनेक बार प्रत्यक्ष हुआ । परन्तु ये सभी प्रत्यक्ष व्याप्तिको विषय नहीं कर सकते, किंतु पूर्वमें जिस जिस धूम और अग्निका अनुभव हो चुका है उस उसके स्मरणसे और फिर उन अनेक धूम तथा अग्नियोंके समान इतर धूम अग्नियोंके अनुसन्धानरूप प्रत्यभिज्ञानकी सहायता से एक साथ होनेवाला प्रत्यक्षविशेष व्याप्तिको विषय कर सकता है । इससे यह फलितार्थ सिद्ध हुआ कि, स्मरण और प्रत्यभिज्ञानके साथ होनेवाला प्रत्यक्षविशेष ही जब व्याप्तिको विषय कर सकता है तब तर्कनामक पृथकू प्रमाण
SR No.022438
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1913
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy