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________________ ५५ विषयमें कुछ न कुछ विशेषता रहती है और उस विष. यमें उत्पन्न होनेवाले समारोपको वे दूर करते हैं इसलिये ईहादि झान प्रमाण भी हैं, उसी तरह स्मृति भी धारणाद्वारा ग्रहणकिये हुए विषयमें प्रवृत्त होनेपर भी प्रमाण है । क्योंकि धारणाका विषय “यह" ऐसा है और स्मरणका विषय “वह" ऐसा है। . इसलिये स्मरण अपने विषयमें होनेवाले अस्मरणादिक समारोपोंका व्यवच्छेदक होनेसे प्रमाण ही है। ऐसा ही प्रमेयकम. लमार्तण्डमें कहा है कि "विस्मरण संशय विपर्यासखरूप समारोपका निराकरण करनेसे स्मृति प्रमाण है।" स्मरण अनुभूत पदार्थमें प्रवृत्त होता है एतावता यदि वह अप्रमाण हो जाय तो अनुमानसे जाने हुए अग्निमें पीछे प्रवृत्त होनेवाला प्रत्यक्ष प्रमाण भी अप्रमाण ठहरेगा। अविसंवादित्वाच प्रमाणं स्मृतिः प्रत्यक्षादिवत् । न हि स्मृत्वा निक्षेपादिषु प्रवर्तमानस्य विषयविसंवादोस्ति । यत्र त्वस्ति विसंवादस्तत्र स्मरणस्याभासत्वं प्रत्यक्षाभासवत् । तदेवं सरणाख्यं पृथक् प्रमाणमस्तीति सिद्धम् । प्रत्यक्षादिककी तरह अविसंवादी होनेसे भी स्मृति प्रमाण है। क्योंकि, किसी पदार्थका स्मरण करके उसके रखने उठाने आदिमें प्रवृत्त होनेवाले मनुष्यको स्मृतिके विषयमें विसंवाद नहीं होता। यदि कहींपर विसंवाद होता भी है तो वह स्मरण प्रमाण नहीं समझना चाहिये किन्तु वह प्रत्यक्षाभासकी तरह स्मरणाभास है । इस प्रकार स्मरण नामक पृथक् प्रमाणका होना सिद्ध हुआ। अनुभवस्मृतिहेतुकं सङ्कलनात्मकं ज्ञानं प्रत्यभिज्ञानम् । इदन्तोल्लेखि ज्ञानमनुभवः । तत्तोल्लेखि ज्ञान स्मरणम् । तदुभयसमुत्थं पूर्वोत्तरैक्यसादृश्यवैलक्षण्यादिविषयं यत्सङ्कलनरूपं ज्ञानं जायते तत्प्रत्यभिज्ञानमिति ज्ञातव्यम् । यथा स
SR No.022438
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1913
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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