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नन्वस्तु केवलस्य पारमार्थिकत्वमवधिमनःपर्यययोस्तु न युक्तं विकलत्वादिति चेन साकल्यवैकल्ययोरत्र विषयौपाधिकत्वात् । तथाहि, सर्वद्रव्यपर्यायविषयमिति केवलं सकलम् । अवधिमनःपर्ययौ तु कतिपयविषयत्वाद्विकलौ । नैतावता तयोः पारमार्थिकत्वच्युतिः, केवलवत्तयोरपि वैशयं स्वविषये साकल्येन समस्तीति तावपि पारमार्थिकावेव ।
(शङ्का) केवलज्ञान पारमार्थिकप्रत्यक्ष है यह कहना तो ठीक है परन्तु अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान, पारमार्थिकप्रत्यक्ष नहीं होसकते, क्योंकि ये विकल हैं। अर्थात् ये सम्पूर्ण द्रव्यपर्यायोंको विषय नहीं करते । (उत्तर) यह शङ्का ठीक नहीं है, क्योंकि यहांपर साकल्य और वैकल्य ये दोनों ही विशेषण विषयकी अपेक्षासे माने जाते हैं । अर्थात् केवलज्ञान सम्पूर्ण द्रव्यपर्यायोंको विषय करता है इसलिये उसको सकल कहते हैं। अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान कुछ थोड़ेसे पदार्थोंको विषय करते हैं इसलिये इनको विकल कहते हैं। परन्तु इससे इनके पारमार्थिकत्वमें कुछ हानि नहीं है । क्योंकि जिस प्रकार केवलज्ञानका अपने नियत विषयमें सर्वथा वैशय है उसी प्रकार इन दोनोंका भी अपने विषयमें सर्वथा वैशद्य है । इसलिये ये दोनों पारमार्थिक ही हैं।
कि “असहायं प्रत्यक्षं भवति परोक्षं सहायसापेक्षम्" अर्थात् जो विना सहायताके हो उसको प्रत्यक्ष कहते हैं और जो दूसरेकी सहायतासे हो उसको परोक्ष कहते हैं।
१ केवल तथा अवधि मनःपर्ययमें विषयभेदादिकी अपेक्षा भेद है । किन्तु अवधि तथा मनःपर्ययमें जितना नियत विषय प्रतिभासित होता है वह सम्पूर्ण विशदरूपसे ही होता है।