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________________ विषयभूतस्य सामान्यस्य परमार्थत्वमेवाबाधितत्वात् । प्रत्युत सौगताभिमत एव स्वलक्षणे विवादः । तस्मान्न निर्विकल्पकरूपत्वं प्रत्यक्षस्य सनिकर्षस्य च योगाभ्युपगतस्याचेतनत्वात्कुतः प्रमितिकरणत्वं कुतस्तरां प्रमाणत्वं कुतस्तमा प्रत्यक्षत्वम् ? (प्रश्न) योग्यता किसको कहते हैं? (उत्तर) अपने अपने आवरणके, अर्थात्-मतिज्ञानावरण और श्रुतज्ञानावरणमेंसे विवक्षित इंद्रियसंबंधी आवरणादि कर्मके क्षयोपशमको योग्यता कहते हैं । इसीलिये ऐसा कहा है कि "अपने अपने आवरणकी क्षयोपशमरूप योग्यतासे शानमें प्रतिनियत अर्थकी व्यवस्था होती है। जो लोग ऐसा कहते हैं कि "ज्ञान विषयाकार होनेसे ही विषयका प्रकाश करता है" उनका भी खण्डन इस पूर्वोक्त कथनसे हो गया, क्योंकि दीपक, घटाकार न होकर भी घटका प्रकाश करता है। अर्थात् दीपककी तरह ज्ञान भी विषयाकार न होकर यदि विषयका प्रकाश करै तो इसमें कोई बाधा नहीं है। इसीलिये अर्थाकारताकी तरह अर्थजन्यता भी ज्ञानका प्रामाण्य सिद्ध करनेमें कारण नहीं है। और यह बात जो तुमने कही थी कि “सविकल्पकका विषयभूत सामान्य अपरमार्थ है इसलिये निर्विकल्पकको ही प्रमाण मानना चाहिये" सो यह भी ठीक नहीं है। क्योंकि सविकल्पकका विषयभूत सामान्य परमार्थ ही है । इसमें किसी प्रमाणसे कोई बाधा नहीं आती। प्रत्युत बौद्धके माने हुए खलक्षणमें ही विवाद है । इसलिये निर्विकल्पक प्रत्यक्ष नहीं हो सकता। यौगोंका माना हुआ सन्निकर्ष अचेतन होनेसे जब प्रमितिके प्रति करण ही नहीं हो सकता तो प्रमाण, या उसमें भी प्रत्यक्ष किस तरह हो सकता है ?
SR No.022438
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1913
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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