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________________ कमनेकान्तात्मकत्वम् । एवं विधिरूपो हेतुर्दर्शितः । प्रतिषेधरूपोपि हेतुर्द्विविधो, विधिसाधकः प्रतिषेधसाधकश्चेति । तत्राद्यो यथा, अस्त्यत्र प्राणिनि सम्यक्त्वं विपरीताभिनिवेशाभावात् । अत्र विपरीताभिनिवेशाभावः प्रतिषेधरूपः सम्यक्त्वसद्भावं साधयति इति प्रतिषेधरूपो विधिसाधको हेतुः । (शङ्का) वह वस्तुकी अनेकान्तात्मकता क्या है कि जिसके बलसे सर्वथैकान्तके अभावकी सिद्धि करते हो? (समाधान) -सम्पूर्ण जीवादिक पदार्थोंमें भावरूपता अभावरूपता, एकरूपता अनेकरूपता, नित्यरूपता अनित्यरूपता इत्यादि अनेक धौके रहनेको अनेकान्तात्मकता कहते हैं । इस प्रकार विधिरूप हेतुका वर्णन किया। प्रतिषेधरूप हेतु भी दो प्रकारका है; एक विधिसाधक दूसरा प्रतिषेधसाधक । उसमेसे पहला-जैसे, इस प्राणीके सम्यक्त्व है; क्योंकि इसको विपरीत दुराग्रह नहीं है। यहांपर विपरीत दुराग्रहका न होना प्रतिषेधरूप हेतु है और वह सम्यक्त्वके सद्भावको सिद्ध करता है इसलिये इस हेतुको प्रतिषेधरूप विधिसाधक कहते हैं। द्वितीयो यथा, नास्त्यत्र धूमः अग्यनुपलब्धेरिति । अत्र ह्यम्यभावः प्रतिषेधरूपो धृमाभावं प्रतिषेधरूपमेव साधयतीति प्रतिषेधरूपप्रतिषेधसाधको हेतुः । तदेवं विधिप्रतिषेधरूपतया द्विविधस्य हेतोः कतिचिदवान्तरभेदा उदाहृताः। विस्तरतस्तु परीक्षामुखतः प्रतिपत्तव्याः । इत्थमुक्तलक्षणा हेतवः साध्यं गमयन्ति, नान्ये, हेत्वाभासत्वात् । दूसरा प्रतिषेधसाधक है, जैसे यहांपर धूम नहीं है क्योंकि अग्नि नहीं दीखती है। यहांपर अन्यभाव हेतु अभावरूप है और
SR No.022438
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1913
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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