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________________ ( ७७ ) [ चतुर्थ परिच्छेद अकारादिः पौद्गलिको वर्णः ॥ ६ ॥ वर्णानामन्योन्यापेक्षाणां निरपेक्षा संहतिः पदम्, पदानां तु वाक्यम् ॥ १० ॥ ● अर्थ – वर्ण, पद और वाक्य रूप वचन कहलाता है । - भाषावर्गणा से बने हुए अ आदि वर्ण कहलाते हैं ॥ परस्पर सापेक्ष वर्णों के निरपेक्ष समूह को पद कहते हैं और परस्पर सापेक्ष पदों के निरपेक्ष समूह को वाक्य कहते हैं । विवेचन - वर्ण, पद और वाक्य ये मिलकर वचन कहलाते हैं। अ, आ, आदि स्वरों को तथा क्, ख्, आदि व्यंजनों को वर्ण कहते हैं । यह वर्ण भाषावर्गणा नामक पुद्गल द्रव्य में बनते है । इन वर्गों के पारस्परिक मेल से पद बनता है और पदों के मेल से वाक्य बनता है । वर्णों का मेल जब ऐसा होता है कि उसमें किसी और वर्ण को मिलाने की आवश्यकता न रहे और मिले हुए वही वर्ण किसी अर्थ का बोध करावें तभी उन्हें पद कह सकते हैं; निरर्थक वर्ण-समूह को पद नहीं कह सकते । जैसे 'महावीर' यह वर्ण समूह पद है, क्योंकि इससे वर्धमान भगवान के अर्थ का बोध होता है और इस अर्थत्रोघ के लिये और किसी भी वर्ण की आवश्यकता नहीं है । इसी प्रकार पदों का वही समूह वाक्य कहलाता है, जो योग्य अर्थ का बोध कराता हो और अर्थ के बोध के लिए अन्य किसी पद की अपेक्षा न रखता हो । शब्द अर्थववक कैसे है ? स्वाभाविक सामर्थ्यसमयाभ्यामर्थबोध निबन्धनं शब्दः॥। ११ ॥
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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