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________________ चतुर्थ परिच्छेद अागम प्रमाण का विवेचन श्रागम का स्वरूप प्राप्तवचनादाविर्भूतमर्थसंवेदनमागमः ॥ १ ॥ उपचारादाप्तवचनं च ॥ २ ॥ ... अर्थ- प्राप्त के वचन से होने वाले पदार्थ के ज्ञान को अागम कहते हैं। उपचार से प्राप्त का वचन भी आगम कहलाता है ।। विवेचन-प्राप्त का स्वरूप अगले सूत्र में बताया जायगा। प्रामाणिक पुरुष को प्राप्त कहते हैं। प्राप्त के शब्दों को सुनकर श्रोता को पदार्थ का ज्ञान होता है। उसी ज्ञान को आगम कहते हैं। प्रागम के इस लक्षण से ज्ञात होता है कि आगम-ज्ञान में प्राप्त कारण होते हैं। अतः शब्द कारण हैं और ज्ञान कार्य है। कारण में कार्य का उपचार करने से प्राप्त के वचन भी आगम कहलाते हैं। आगम का उदाहरण समस्त्यत्र प्रदेशेरत्ननिधानं, सन्ति रत्नसानुप्रभृतयः ॥३॥ अर्थ-इस जगह रत्नों का खजाना है, मेरु पर्वत आदि हैं।
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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