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________________ प्रमाण-नय तत्त्वालोक ] . (७२) अर्थ--वस्तु-समूह अनेकान्तरूप है क्योंकि एकान्त स्वभाव की अनुपलब्धि है। विवेचन--यहाँ अनेकान्तरूपता साध्य से विरुद्ध एकान्त स्वभाव की अनुपलब्धि है । अतः यह विरुद्ध स्वभावानुपलब्धि है। विरुद्ध ब्यापकानुपलब्धि विरुद्ध व्यापकानुपलब्धिर्यथा अस्त्यत्र छाया, औषएयानुपलब्धेः ॥ १०८ ॥ अर्थ-यहाँ छाया है, क्योंकि उष्णता की अनुपलब्धि है। विवेचन-यहाँ छाया-साव्य से विरुद्ध व्यापक उष्णता की अनुपलब्धि होने से यह विरुद्ध व्यापकानुपलब्धि है। विरुद्ध सहचरानुपलब्धि विरुद्ध सहचरानुपलब्धिर्यथा-अस्त्यस्य मिथ्याज्ञानं सम्यग्दर्शनानुपलब्धेः ॥ १०६ ॥ अर्थ--इस पुरुष में मिथ्याज्ञान है, क्योंकि सम्यग्दर्शन की अनुपलब्धि है। विवेचन--यहाँ मिथ्य ज्ञान-साध्य से विरुद्ध सहचर सम्यग्ज्ञान की अनुपलब्धि होने से यह विरुद्ध सहचरोपलब्धि है। - ऊपर बताये हुए तथा इसी प्रकार के अन्य हेतुओं को पहचानने का एक सुगम उपाय यह है
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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