SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५६ ) [ तृतीय परिच्छेद शंका – जागते समय हमें देवदत्त का ज्ञान हुआ। रात में हम सो गये । दूसरे दिन हमें देवदत्त का ज्ञान रहता है। ऐसी अव स्था में सोने से पहले का ज्ञान सोने के बाद के ज्ञान का कारण है । इसके अतिरिक्त छह महीने पश्चात् होने वाला मरण अरुन्धती का न दीखना आदि अरिष्टों का कारण होता है । यहाँ दोनों जगह समय का व्यवधान होने पर भी कार्य कारण भाव है । समाधान- - कारण वही कहलाता है जो कार्य की उत्पत्ति में व्यापार करता है । जैसे कुम्भार घट की उत्पत्ति में व्यापार करता है इसीलिए उसे घट का कारण माना जाता है । भूतकालीन जाग्रत अवस्था का ज्ञान और भविष्यकालीन मरण, प्रबोध और अरिष्ट की उत्पत्ति में व्यापार नहीं करते, अतः उन्हें कारण नहीं माना जा सकता । शंका- भूतकालीन जाग्रत अवस्था के ज्ञान का और भविष्यकालीन मरण का प्रबोध और अरिष्ट की उत्पत्ति में व्यापार होता है, यह मान लेने में क्या हानि है ? समाधान- व्यापार वही करेगा जो विद्यमान होगा। जो नष्ट हो चुका है अथवा जो अभी उत्पन्न ही नहीं हुआ, वह अविद्यमान या असत् है ! असत् किसी कार्य की उत्पत्ति में व्यापार नहीं कर सकता । और व्यापार किए बिना ही कारण मान लेने पर चाहे जिसे कारण मान लेना पड़ेगा । सहचर हेतु का समर्थन सहचारिणोः परस्परस्वरूपपरित्यागेन तादात्म्यानुपपत्तेः 'सहोत्पादेन तदुत्पत्तिविपत्तेश्च सहचरहेतोरपि प्रोक्तेषु नानुप्रवेशः ।। ७६ ।।
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy