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________________ (५७) [तृतीय परिच्छेद सकता है; पूर्व रूप से उसका अनुमान करने की आवश्यकता क्यों बताई ? __समाधान-सूत्र में 'तमस्विन्याम्' पद है। उसका अर्थ है अंधेरी रात । अन्धेरी गन कहने का प्रयोजन यह है कि रस का तो जिह्वा-इन्द्रिय से प्रत्यक्ष हो रहा हो पर रूप का प्रत्यक्ष न होता होतब रूप अनुमान से ही जाना जा सकेगा। पूर्वचर-उत्तरचर का समर्थन पूर्वचरोत्तरचरयोर्न स्वभावकार्यकारणभावौ, तयोः कालव्यवहितावनुपलम्भात् ॥ ७१ ॥ विवेचन-पूर्वचर आर उत्तग्चर हेतुओं का स्वभाव और कार्य हेतु में समावेश नहीं हो सकता, क्योंकि स्वभाव और कार्य हेतु काल का व्यवधान होने पर नहीं होते। विवेचन-जहाँ तादात्म्य सम्बन्ध हो वहाँ स्वभाव हेतु होता है और जहाँ तदुत्पत्ति सम्बन्ध हो वहाँ काय हेतु होता है। तादात्म्य सम्बन्ध समकालीन वस्तुओं में होता है और कार्य-कारण सम्बन्ध अव्यवहित पूर्वोत्तर क्षणवर्ती धूम अग्नि आदि में होता है। इस प्रकार समय का व्यवधान दोनों में नहीं पाया जाता। किन्तु पूर्वचर और उत्तरचर में समय का व्यवधान होता है अतः इन दोनों का स्वभाव अथवा कार्य हेतु में समावेश नहीं हो सकता। व्यवधान में कार्यकारणभाव का अभाव .. न चातिक्रान्तानागतयोर्जाग्रदशासंवेदनमरणयोः प्रबोघोत्यातौ प्रति कारणत्वं, व्यवहितत्वेन निर्व्यापारत्वादिति ॥७२।।
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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