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________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] (५४) विवेचन-एक द्रव्य त्रिकाल में भी दूसग द्रव्य नहीं बन सकता जैसे चेतन कभी अचेतन न हुआ, न है और न होगा। इस प्रकार प्रत्येक द्रव्य में, दूसरे द्रव्य का त्रैकालिक अभाव पाया जाता है; वही अत्यन्ताभाव है । एक ही द्रव्य की अनेक पर्यायों का पारस्परिक अभाव इतरेतराभाव कहलाता है और अनेक द्रव्यों का पारस्परिक अभाव अत्यन्ताभाव कहलाता है । प्रागभाव अनादि सान्त है, प्रध्वंसाभाव सादि अनन्त है, इतरेतराभाव सादि सान्त है और अत्यन्ताभाव अनादि अनन्त है। उपलब्धि हेतु के भेद उपलब्धेरपि द्वैविध्यमविरुद्धोपलब्धिविरुद्धोपलब्धिश्च ॥६७/ अर्थ- उपलब्धि हेतु के भी दो भेद हैं-(१) अविरुद्धोपलब्धि और (२) विरुद्धोपलब्धि । विवेचन-साध्य से अविरुद्ध हेतु की उपलब्धि अविरु द्रोपलब्धि और साध्य से विरुद्ध हेतु की उपलब्धि विरुद्धोपलब्धि है। विधिसाधक अविरुद्धोपलब्धि के भेद तत्राविरुद्धोपलब्धिर्विधिसिद्धौ षोढा ॥६॥ अर्थ-विधि रूप साध्य को सिद्ध करने वाली अविरुद्धोलब्धि छह प्रकार की है। भेदों का निर्देश साध्येनाविरुद्धानां व्याप्यकार्यकारणपूर्वचरोत्तरचरसहचराणामुपलब्धिः ॥६६॥
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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