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________________ प्रमाण-नय तत्त्वालोक] . (४६) स्थल अग्नि वाला है, क्योंकि धूमवान् है, जो धूमवान् होता है वह अग्निवाला होता है, जैसे पाकशाला । ___ विवेचन-वस्तु अनेकान्तरूप है, क्योंकि वह सत् है; यहाँ सत्त्व हेतु की 'अनेकान्त रूप' इस साध्य के साथ व्याप्ति अन्ताप्ति है, क्योंकि यह पक्ष में ही हो सकती है-बाहर नहीं । 'वस्तु' यहाँ पक्ष है, उसमें संसार की सभी वस्तुएँ अन्तर्गत हैं, पक्ष के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचता जिसे सपक्ष बनाकर वहाँ व्याप्ति बताई जाय। . . दूसरे उदाहरण में 'यह स्थान' पक्ष है और धूम तथा अग्नि की व्याप्ति उस स्थान से बाहर सपक्ष (पाकशाला) में बताई गई है, अतएव यह बहिाप्ति है। उपनय निगमन भी अनुमान के अंग नहीं नोपनयनिगमनयोरपि परप्रतिपत्तौ सामर्थ्य , पक्षहेतुप्रयोगादेव तस्याः सद्भावात् ॥ ४० ॥ अर्थ-उपनय और निगमन भी परप्रतिपत्ति में कारण नहीं हैं, क्योंकि पक्ष और हेतु के प्रयोग से ही पर को प्रतिपत्ति ( ज्ञान ) होजाती है। . . ...... .. विवेचन-योगमत का निरास करते हुए यहाँ उपनय और निगमन, अनुमान के अङ्ग नहीं हैं,यह बतलाया गया है। पक्ष और हेतु को बोलने मात्र से ही जब दूसरे को साध्य का ज्ञान हो जाता है तब उपनय और निगमन की क्या आवश्यकता है.? ......
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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