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________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] (२४) माना जाता है अतः लोक-व्यवहार के अनुरोध से उसे भी प्रत्यक्ष कहा है। पारमार्थिक प्रत्यक्ष के भेद तद् विकलं सकलं च ॥१४॥ अर्थ-पारमार्थिक प्रत्यक्ष दो प्रकार का है- (१) विकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष और (२) सकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष। विवेचन-जो वस्तुतः प्रत्यक्ष हो किन्तु विकल अर्थात् अधूग या असम्पूर्ण हो उसे विकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहते हैं और जो संपूर्ण है-कोई भी पदार्थ जिस प्रत्यक्ष से बाहर नहीं है, उसे सकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहते हैं। विकलपारमार्थिक प्रत्यक्ष के भेद तत्र विकलमवधिमनःपर्यायज्ञानरूपतया द्वधा ॥२०॥ ____अर्थ-विकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष दो प्रकार का है(१) अवधिज्ञान और (२) मनःपर्याय ज्ञान । अवधिज्ञान का स्वरूप _ अवधिज्ञानावरणविलयविशेषसमुद्भवं रूपिद्रव्यगोचरमवधिज्ञानम् ॥२१॥ अर्थ-अवधिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाला, भवप्रत्यय तथा गुणप्रत्यय, रूपी द्रव्यों को जानने वाला ज्ञान अवधिज्ञान कहलाता है।
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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