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________________ [प्रथम परिच्छेद है, पर इन्द्रियाँ वहां असाधारण कारण हैं, अतएव उसे इन्द्रियनिबंधन नाम दिया गया है। इन्द्रियनिबन्धन-अनिन्द्रियनिबन्धन के भेद एतद् द्वितयमवग्रहहावायधारणाभेदादेकशश्चतुर्विकल्पकम् ॥ ६ ॥ ___ अर्थ-अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा के भेद से यह दोनों प्रकार का सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष चार-चार प्रकार का है। अर्थात् इन्द्रियनिबन्धन के भी चार भेद हैं और अनिन्द्रियनिबन्धन के भी चार भेद हैं। अवग्रह का स्वरूप विषयविषयिसन्निपातानन्तरसमुद्भूतसत्तामात्रगोचरदर्शनाजातं, आद्यं, अवान्तरसामान्याकारविशिष्टवस्तुग्रहणमवग्रहः॥ ७ ॥ अर्थ-विषय (पदार्थ) और विषयी (चक्षु आदि) का यथोचित देश में सम्बन्ध होने पर सत्तामात्र को जानने वाला दर्शन उत्पन्न होता है । इसके अनन्तर सब से पहले, मनुष्यत्व आदि अवान्तर सामान्य से युक्त वस्तु को जानने वाला ज्ञान अवग्रह कहलाता है । ... विवेचन-जैन शास्त्रों में दो उपयोग प्रसिद्ध हैं-दर्शनोपयोग और ज्ञानोपयोग । पहले दर्शनोपयोग होता है फिर ज्ञानोपयोग होता है। यहां ज्ञानोपयोग का वर्णन करने के लिये उससे पूर्वभावी दर्शनोपयोग का भी कथन किया गया है ।
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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