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________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] (१५०) विवेचन-सातों नयों के विषय कीन्यूनाधिकता यहाँ सामान्य रूप से बताई गई है। पहले वाला नय विशाल विषय वाला और पीछे का नय संकुचित विषय वाला है। तात्पर्य यह है कि नैगम नय सबसे विशाल दृष्टिकोण है। फिर उत्तरोत्तर दृष्टिकोणों में सूक्ष्मता आती गई है। विशेष विवरण सूत्रकार ने स्वयं दिया है। . अल्पबहुत्व का स्पष्टीकरण सन्मात्रगोचरात् संग्रहानैगमो भावाभावभूमिकत्वाद् भूमविषयः ॥४७॥ सद्विशेषप्रकाशका व्यवहारतः संग्रहः समस्तसत्समूहोपदर्शकत्वात् बहुविषयः॥ ४८ ।। वर्त्तमानविषयादृजुसूत्राद् व्यवहारस्त्रिकालविषयावलम्बित्वादनल्पार्थः ॥ ४६॥ कालादिभेदेन भिन्नार्थोपदर्शिनः शब्दाद्-ऋजुसूत्रस्तद्विपरीतवेदकत्वान्महार्थः ॥ ५० ॥ प्रतिपर्यायशब्दमर्थभेदमभीप्सतः समभिरूढाच्छब्दस्तद्विपर्ययानुयायित्वात् प्रभूतविषयः ॥ ५१॥ प्रतिक्रियं विभिन्नमर्थ प्रतिजानानादेवंभृतात् समभिरूढस्तदन्यथार्थस्थापकत्वान्महागोचरः ॥ ५२ ॥ अर्थ--सिर्फ सत्ता को विषय करने वाले संग्रहनय की अपेक्षा सत्ता और असत्ता को विषय करने वाला नैगम नय अधिक विषय वाला है।
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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