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________________ (१४३) [ सातवाँ परिच्छेद यथा - सुखविवर्त्तः सम्प्रत्यस्तीत्यादि ॥ २६ ॥ अर्थ - पदार्थ की वर्त्तमान क्षण में रहने वाली पर्याय को ही प्रधान रूप से विषय करने वाला अभिप्राय ऋजुसूत्र नय कहलाता है । जैसे - इस समय सुख रूप पर्याय है, इत्यादि । विवेचन - द्रव्य को गौण करके मुख्य रूप से पर्याय को विषय करने वाला नय पर्यायार्थिक नय कहलाता है । ऋजुसूत्र नय भी पर्यायार्थिक नय है अतएव यह पर्याय को ही मुख्य करता है । 'इस समय सुख पर्याय है' इस वाक्य से सुख पर्याय की प्रधानता द्योतित की गई है, सुख पर्याय के आधार भूत द्रव्य-जीव को गौण कर दिया गया है । ऋजुसूवनयाभास सर्वथा द्रव्यापलापी तदाभासः || ३० ॥ यथा - तथागतमतम् ॥ ३१ ॥ --- अर्थ — द्रव्य का एकान्त निषेध करने वाला अभिप्राय ऋजुसूत्रनयामास कहलाता है । जैसे—बौद्धमत | विवेचन - ऋजुसूत्रनय द्रव्य को गौण करके पर्याय को मुख्य करता है, किन्तु ऋजुसूत्राभास द्रव्य का सर्वथा अपलाप कर देता है । वह पर्यायों को ही वास्तविक मानता है और पर्यायों में अनुगत रूप से रहने वाले द्रव्य का निषेध करता है । बौद्धों का मत - क्षणिकवाद या पर्यायवाद - ऋजुसून गाभास है । .
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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